मेरे जख्म

गजल

पत्थर था मै , मोम बनाकर छोड़ दिया ,
बदन को मेरे यूँ फूलों सा मरोड़ दिया !

उठता , चलता और फिर गिरता था मै ,
हिम्मत कमबख्तों ने , मेरा तोडा दिया !

ना मै था उसका वो मुक्कमल किताब ,
पढ़ा उसने खूब फिर मुझे फाड़ दिया !

था शख्स वो कैसा जो लूटा खुब मुझे ,
शख्स के इन बातों ने मुझे झंझोड़ दिया !

लिखता था जिसकी नीली आंखें देखकर ,
सितमगर शख्स ने , दुनिया उजाड दिया !

सांस समय मेरा बाकी थी अभी जहां में ,
जालिमों ने खुदा से मेरा तार जोड़ दिया !

यूं मिले ना हमसे कोई काम था उन्हे , पर ,
क्यूं ‘कुमार’ को रदीफ़ बनाकर छोड़ दिया !
••• कुमार अरविन्द •••

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