मेरे पिता मेरी अभिव्यक्ति।।
इस बार बादलो को खोजा हैं
पहले खुद छा जाते थे
इस बार शब्दों को ढूंढा है
पहले खुद आ जाते थे
बेतुके से लगने लगे
अपने ही शब्द
ये देख कर में रह
गया अचंभित,स्तब्ध
इस बार लहरों को नहीं
समंदर को चुना था
इन्होने ही मेरा
पूरा
राह उनकी काटों से
भरी रही
मगर मन रूपी घांस
हमेशा हरी रही
जीवन में कठिनाइयाँ आई
मगर कभी भी
गलत राह
नहीं अपनाई
जब विशाल पेड़ थे
तो सबने ली छाया
कुछ टहनियां क्या कटी
खुद को अकेला पाया
टेहनियों के कटने से
कमज़ोर नहीं पड़े
और मज़बूती व् हिम्मत से
हर समस्या से लड़े
विपरीत परिस्थितियों से
लड़ने की दम थी
सम्मान कम मिला
क्यूंकि हरियाली कम थी
मन का सरोवर
दर्द से भरा होगा
अकेला ही सारे बोझ
सेह रहा होगा
उस सरोवर की एक बूँद भी
उनके चेहरे पर नही दिखती
मेरे पिता
मेरी अभिव्यक्ति
खुद की इच्छाओं का गला घोंट
मेरी तम्मना पूछते हैं
मेरे लिए अनेको बार
खुद से ही झुन्जते हैं
उनमे है सहनशीलता की
अनोखी शक्ति
मेरे पिता
मेरी अभियव्यक्ति
डगमगा जाता हूँ अगर
आपकी सीखो से संभलता हूँ
पैसों की इस दुनिया में
मै संतोष की राह पर चलता हूँ
मुझसे पहले खुलती है
मेरे बाद बंद होती है
चमक दमक से भरी वो आँखे
मुझसे छुपकर रोती है
वो कहते है चंद रुकावटों
से ज़िन्दगी थम नहीं सकती
मेरे पिता
मेरी अभिव्यक्ति
प्रद्युम्न चौरे??
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत अच्छे
बहुत खूब, अतिसुन्दर