सैकड़ों आंसू …. , यूं ही नहीं …. खज़ाने में मेरे ,
जब भी कोई रोता है , उसके आंसू बटोर लाता हूं .
किसके हैं … , कब गिरे थे … वज़ह …… बता सकता हूं .
उंगलियों के पोरों पर रख …
गिरने का…. वक़्त बता सकता हूं .
सफर अनज़ान ही सही .. पर खत्म किस जगह …
वो मंज़िल बता सकता हूं
आंसूओं से मिलान आसूओं का कर ..
फ़र्क़ बता सकता हूं
आंखों के….. मज़हब से …..नहीं वास्ता इनका ,
नमक क्यूं घुला… आंखों से निकलकर …
वो दर्द बता सकता हूं .
झूठी शान का है ……या भूखे पेट से टपका
चख के खारापन ……
इनका फर्क़ बता सकता हूं
मैं हर आंसू का किमिया बता सकता हूं ॥
कुछ खास आंसू भी रखें हैं , मेरे खज़ाने में ,
ज़िंदगी के दौड़ में नाक़ाम …..
और “ हासिल” से नाखुश
कई दुख के आंसू …..
बिकते ज़िस्म के भीतर . … मौजूद
पाकीज़ा रुह के .. आंसू
फिर भी …. समेट नहीं पाता हूं
एक़्वेरियम में कैद —
शीशे से झांकती
मायूस आंखों के आंसू ..
जो निकलते ही घुल जाते हैं ,
अपने ही संस्कारों के पानी में .
आसान नहीं है , हर आंख को इंसाफ़ दिला पाना
थक कर सोचता हूं , छोड़ दूं ये काम अपना
पर क्या करुं….
काम मन का हो तो , छोड़ा नहीं जाता
लाख चाह के भी मुंह मोड़ा नहीं जाता
अरे सुनी है … ये सिसकी .. अभी तुमने …
जाना होगा… मुझे ….
गिरने से पहले जमीं पर… थामना होगा उन्हें
क्या करूं , मैं हूं ही ऐसा …
शामिल .. उन चंद लोगों में….
जो बेज़ुबानों के बोल जानते हैं ,
जो उनके आंसूओं का मोल जानते हैं . ॥
………………..रविकान्त राऊत
awesome 🙂
शुक्रिया दोस्त
अश्कों का खजाना जमा कर के बैठा हूं अरसे से
इन्तजार है उस दिन का, जब लुटा बैठूं मैं अपना सारा खजाना 🙂
आभार आपका बहुत बहुत मित्र,
nice poem sir!
Thanks
वाह बहुत सुंदर रचना
बहुत खूब