मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ

मै चंदुलाल का तन हूँ।
मैं खुब चंद का मन हूँ।
मैं गुरु घांसी का धर्मक्षेत्र हूँ।
मैं मिनी माता का कर्म क्षेत्र हूँ।।
मैं पहले कुंभ का तर्पन हूँ।
मैं राजिम का समर्पन हूँ।।
मैं ही राम का नाना हूँ।
लेकिन अब सियाना हूँ।।
मैनें सबको बल दिया है।
सुनहरा ये पल दिया है।।
मैंने सबको अपनाया है।
मेरा दिया सबने खाया है।।
लेकिन अपनों से छला पड़ा हूँ
सरगुजा से बस्तर तक
देखो मैं तो जला पड़ा हूँ।
मन गठरी खोल रहा हूँ मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ॥
हरे रंग की धोती मेरा, कन्धे पर लाल रंग का साफा है।
धान की कलगी से सजा धजा सिर पे मेरा पागा है।।
एक हाथ में फावड़ा है और दूजे हाथ में कुदाल है।
भंद ई है पैरों पर है, तेजतर्रार कदमों की चाल है।।
महानदी और अरपा पैरी नस-नस मेरा सीच रही है।खेती से सोना उपजाना इस धरती की रीत रही है॥
तपता हूँ खेतों पर अपने, फिर भी आह नहीं भरता हूँ।
त्याग मेरे रग रग में है ज्यादा की चाह नहीं रखता हूँ।
जो भी मेरे घर आता है खुले मन से अपनाता हूँ।
अपने इस भोले पन के कारण अक्सर धोखा हूँ।।
कुछ नलायक हैं जो इस शराफ़त का मज़ाक उड़ाते हैं ।
गिद्धों के जैसे नोच नोच कर मुझको जिन्दा खाते हैं।।
इसीलिए तो दया धरम की गठरी को मै तौल रहा हूँ।
मन की गठरी खोल रहा हूँ मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ॥
मेरे घर में सोने,चांदी और हीरे मोती का भड़ार हैं।
फिर भी छत्तीसगढीया क्यूं दिखता अब लाचार है॥
मेरा कण-कण भरा पड़ा है,लोहा,कोयला और हीरे से।
मेरा चोला दमक रहा है, माईल्ड स्टोन के जखीरे से।।
बस्तर से लेकर रायगढ़ तक कारखानों की भरमार है। उनके दरवाजों पर लिखा है छत्तीसगढीया बेकार है।।
छत्तीसगढीया अफ़सर ना हो कारखानों की अहर्ता है।
परदेशीयों को रोजगार मिले बस यही स्वीकार्यता है॥
चौक चौराहों पर वो लोग नाजायज उगाही करते हैं।
पहाड़ो के सीना चीरकर वहाँ गहरी खाई करते हैं।।
लूट रहे हैं घर मेरा वो और मैं कुछ कहने से डरता हूँ।
जल,जंगल, जमीन हैं मेरे, लेकिन मैं भूखा मरता हूँ।।
मालिक होकर धनी धरती का,बरसों से गरीबी झेल रहा हूँ।
मन की गठरी खोल रहा हूँ मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ।
एक से बड़कर एक, भ्रष्टाचारी नेता मैं पाता हूँ।
रिश्वतखोरी के बाजारों में बेबस ही बिक जाता हूँ।।
जड़ लूटे जमीन लूटे खेत लूट लिए है मक्कारों ने।
आँखों को बस आँसू दिये हैं अबतक के सरकारों ने।
रावण को मिल गया सत्ता, वनवास मिला है राम को।
रिश्वत ही पूरा कर सकता, अब यहाँ हर काम को।।
दफ्तर की कुर्सी छोड़ के अधिकारी गये आराम को।
मिल जायेंगे निश्चित ही वो, मयखाने में शाम को।।
नदी नाले तो सुखे है पर शराब की नदिया बहती है।
जुल्मों सितम सब बंद करो, घर-घर बिटिया कहती है।
शराब बह रही है अब, छत्तीसगढ़ के हर गलियारे में।
यकींन नहीं है तो मुँह लगालो, मंत्रालय के फौहारे में॥
छत्तीसगढ़ीया नशे से दूर रहो, मैं बारम्बार बोल रहा हूँ॥
मन की गठरी खोल रहा हूँ मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ।
छत्तीसगढीया सबले बढ़िया इस नाम से मशहूर हूँ।
विकाश किताबों में लिखा है,लेकिन मैं तो कोसों दूर हूँ।।
तुम भरी सभा में पूछ रहे हैं, कहो ये विकाश कैसा है।
पुरखों ने देखा था सपना, क्या ये छत्तीसगढ़ वैसा है?
सच कहने की आदत मेरी, मैं तनिक नहीं घबराऊंगा।
देखा है गोरख धंधा अब तक, सुनो आज सुनाऊंगा॥
नसबंदी करवाती माताओं को मैंने मरते देखा है।
अमृत दूध के नाम से बच्चों को डरते देखा है।।
सत्ता के दरवाजे पर दिव्यांग को जलते देखा है।
फांसी लगाकर खेतों में किसान को मरते देखा है।।
मैंने नक्सल की आग में बस्तर को जलते देखा है।।
भुमि अधिग्रहण के कारण, रायगढ़ मरते देखा है।।
धमतरी के दंगे में हिन्दू-मुसलमान को लड़ते देखा है।आँखों के आपरेशन में लोगों को अंधे बनते देखा है।।
देखा है नित अपमान मैंने छत्तीसगढ के माटी का।
चीर हरण होते देखा है मैंने,कागेर की घाटी का॥
दुर्योधन राजा हो जब, दु:शासन को अपराधी कौन कहें।
छत्तीसगढ़िया जनता, भीष्म पितामह के जैसे मौन रहे।।
तब्दील हो गया कुरुक्षेत्र में, बम-बारुद मैं देख रहा हूँ॥
मन की गठरी खोल रहा हूँ मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ
जाने कब से कैद हूँ,मैं सरगुजा के रजवाड़ो में।
दिख जाता हूँ कभी-कभी,तीज और त्योहारों में।
महुआ भी गिरता नहीं अब,बसंती बहारों में।
होड़ लगी है देखो अब, सरकारी सियारों में।।
चीख सुनाई देती है अब, इंद्रावती के कलकल में।
डूब गये हैं जाने कितने नक्सलवाद के दलदल में॥
सरकारी अफसर भी अब औरत पे कहर ढ़ाते हैं।
बलात्कार में मरने वाली को नक्सलवादी बताते हैं॥
गाँव तबाह हो गये, अब तो घोटूल मरने वाला हैं।
हाथ उठाकर कहो माटी के खातिर कौन लड़ने वाला हैं।।
बेटों के चुप्पी के कारण जुल्म सितम मैं झेल रहा हूँ।
मन गठरी खोल रहा हूँ मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ॥
गोड़ी ,हल्बी और छत्तीसगढ़ी मिल बैठकर रोतीं हैं।
अंग्रेजी और हिन्दी ,यहाँ पर बिस्तर ताने सोतीं हैं॥
अपने ही घर में जाने क्यूँ छत्तीसगढ़ी को सम्मान नहीं।
हक मिले अब राजभाषा को तिनका-तिनका दान नहीं॥
इतिहास हमारी भाषा का, है किसी से कम नहीं।
अस्मिता भूल रहे हैं हम,और रत्ती भर गम नहीं॥
छत्तीसगढ़ी पढ़ाई नहीं जाती, स्कूल के किताबों में।
नज़र आ जाती है कभी-कभी, नेताओं के वादों में।।
छत्तीसगढ़ी को काम-काज में लाने का इरादा है।
लेकिन झूठे वादों का कागज सादा था सादा है ।।
लाख कोशिशों बावजुद आठवीं अनुसूची नहीं।
या शामिल कराने के लिए सरकारी दिल नहीं। ।छत्तीसगढ़ी की चाह लिए, मैं टेबल टेबल डोल रहा हूँ।
मन की गठरी खोल रहा हूँ मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ॥
ओमप्रकाश चंदेल”अवसर”
पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़
7693919758
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