ओमप्रकाश चंदेल's Posts
मैं बस्तर हूँ
दुनियाँ का कोई कानून चलता नही। रौशनी का दिया कोई जलता नहीं। कोशिशें अमन की दफन हो गयी हर मुद्दे पे बंदूक चलन हो गयी॥ कुछ अरसे पहले मैं गुलजार था। इस बियाबान जंगल में बहार था। आधियाँ फिर ऐसी चलने लगी। नफरतों से बस्तीयाँ जलने लगी। मैं आसरा था भोले भालों का मैं बसेरा था मेहनत वालों का। जर्रा जर्रा ये मेरा बोल रहा है दरदे दिल अपना खोल रहा है। अबूझ वनवासियों का मैं घर हूँ।। आके देखो मुझे मैं बस्तर हूँ।... »
मैं बस्तर हूँ
दुनियाँ का कोई कानून चलता नहीं। रौशनी का दिया कोई जलता नहीं। कोशिशें अमन की दफन हो गयी हर मुद्दे पे बंदूक चलन हो गयी॥ कुछ अरसे पहले मैं गुलजार था। इस बियाबान जंगल में बहार था। आधियाँ फिर ऐसी चलने लगी। नफरतों से बस्तीयाँ जलने लगी। मैं आसरा था भोले भालों का मैं बसेरा था मेहनत वालों का। जर्रा जर्रा ये मेरा बोल रहा है दरदे दिल अपना खोल रहा है। अबूझ वनवासियों का मैं घर हूँ।। आके देखो मुझे मैं बस्तर हूँ... »
लाल चौक बुला रहा हमें, तिरंगा फहराने को
सिहासन के बीमारों ,कविता की ललकार सुनो। छप्पन ऊंची सीना का उतर गया बुखार सुनो। कश्मीर में पीडीपी के संग गठजोड किये बैठे हैं। राष्ट्रवाद के नायक पत्थरबाजी पर मुक कैसे हैं॥ क्यूं चलकर नहीं जा रहे अब कश्मीर बचाने को। लाल चौक बुला रहा तुम्हें,तिरंगा फहराने को॥ भारत माँ जगा रही है एक सौ पच्चीस करोड़ बेटों को। रण क्षेत्र में बुद्ध भी चलेंगे , लेकर अपने उपदेशों को। जिन्हें ज्ञान चाहिए उनको, आगे बढ... »
हमर डाक्टर दवा नही दारु देथे
https://youtu.be/9q3bESm_cFo »
छत्तीसगढीया बघवा पीला मन दहाडेल सीखव रे
छत्तीसगढीया बघवा पीला मन दहाड़ेल सीखव रे »
मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ
https://youtu.be/Y79WeR6uFjIhttps://youtu.be/Y79WeR6uFjI »
मैं छत्तीसगढ़ बोल रहा हूँ
मै चंदुलाल का तन हूँ। मैं खुब चंद का मन हूँ। मैं गुरु घांसी का धर्मक्षेत्र हूँ। मैं मिनी माता का कर्म क्षेत्र हूँ।। मैं पहले कुंभ का तर्पन हूँ। मैं राजिम का समर्पन हूँ।। मैं ही राम का नाना हूँ। लेकिन अब सियाना हूँ।। मैनें सबको बल दिया है। सुनहरा ये पल दिया है।। मैंने सबको अपनाया है। मेरा दिया सबने खाया है।। लेकिन अपनों से छला पड़ा हूँ सरगुजा से बस्तर तक देखो मैं तो जला पड़ा हूँ। मन गठरी खोल रहा हू... »
हाथ खाली रह गया है
हाथ खाली रह गया है। पास था जो बह गया है।। नाज़ है उनको, महल पर औ शहर ही बह गया है॥ कुछ यहाँ मिलता नहीं है कोइ हमसे कह गया है।। लूटते हैं कैसे अपने देख आँसूं बह गया हैं।। पैसे का ही खेल है सब कौन अपना रह गया है॥ छोड़ गए वो भी तंगी में साथ हूँ जो कह गया है।। देख ली हमने ये दुनिया कुछ नहीं औ रह गया है॥ देख लो तुम नातेदारी कौन किसका रह गया है॥ तू दुखी मत हो,ऐ “अवसर” फ़िर खुदा ये कह गया है॥... »
बिकने दो! शराब अभी इस गाँव में…
बिकने दो! शराब अभी इस गाँव में। अभी भी कुछ बच्चे स्कूल जाते हैं घर आकर क ख ग घ गाते हैं। लेकिन कुछ बच्चे तालाब किनारे खाली बोतल चुनते है। कुछ तो खाली बोतल में पानी डालकर पीते है। उम्र कम है लेकिन उनको पापा के जैसे बनना है। ये सब देखकर कमला, बुधिया का ही रोना है। समारु, बुधारु का क्या कहना- उनको तो दो पैग अभी और होना है। कोई डरता हो, डर जाये। कोई मरता हो मर जाये। दारु के संग बस रात चले। उनके मन में... »
तिरंगा हमारा भगवान है
तिरंगा बस झण्डा नहीं हम सब का सम्मान है। तिरंगा कोई कपडा नहीं पूरा हिन्दुस्तान है।। तिरंगा कोई धर्म नहीं सब धर्मों की जान है। तिरंगा बस आज नहीं पुरखों की पहचान है।। तिरंगा बस ज्ञान नहीं ज्ञान का वरदान है। तिरंगा कोई ग्रंथ नहीं पर ग्रंथों का संज्ञान है॥ तिरंगा में दंगा नहीं हिन्दु और मुसलमान है । तिरंगा कोई गीत नहीं प्रार्थना और अजाने है॥ तिरंगा कोई मानव नहीं मानवता की पहचान है। तिरंगा में जाति-धर्... »
क्या आप राष्ट्र वादी हैं?
आज सुबह से मैं, राष्ट्रवादी खोज रहा हूँ। कौन-कौन है देशभक्त ये सोच रहा हूँ॥ सुबह-सुबह किसी ने दरवाजा खटखटाया, देखा तो कन्हैया आया। उसके हाथ में दूध के डिब्बा था। उसके पास अपना ही किस्सा था। देखकर -मुझे कहने लगा कवि साहेब- बर्तन लेकर आओ। चुपचाप क्यों खड़े हो, बताओ? मैं तो आज राष्ट्रवादीयों को खोज रहा हूँ। कौन-कौन है राष्ट्रवादी सोच रहा हूँ।। इसीलिए दूध वाले पूछ बैठा, कन्हैया- क्या तुम राष्ट्र वादी ... »
रहम करना ज़रा मौला
रहम करना ज़रा मौला, नमाजी हूँ तेरा मौला। तू ही तो मीत है मेरा, तू ही तो गीत है मेरा॥ किसी को गैर ना समझूं, किसी से बैर ना रख्खूं।। मेरा दिल बस यही चाहे, सितम कोई नहीं ढ़ाये।। नेकी ही रीत है तेरा, तू ही तो मीत है मेरा। करम ये हो मेरा मौला, रहम करना ज़रा मौला।। भला क्या है बुरा क्या है, तेरा क्या है मेरा क्या है। लड़ाई छोड़ देना है, दिलों को जोड़ लेना है। तू ही तो जीत है मेरा, तू ही तो... »
छत्तीसगढ़ के घायल मन की पीड़ा कहने आया हूँ।
मैं किसी सियासत का समर्थन नहीं करता हूँ। भ्रष्टाचार के सम्मुख मैं समर्पण नहीं करता हूँ॥ सरकारी बंदिस को मैं स्वीकार नहीं करता हूँ। राजनीति के चाबुक से भी मैं नहीं डरता हूँ।। मेरी कविता जनता के दुख दर्दों की कहानी है। मेरी कविता भोले-भाले गरीबों की जुबानी है॥ मैं कमजोरों की बातों को स्याही में रंग देता हूँ। मैं अबला के ज़ज्बातों को शब्दों में संग देता हूँ।। मैं अपने कलम से सच लिखने की ताकत रखता हूँ... »
वंदेमातरम् गाता हूँ ५
वंदेमातरम् गाता हूँ ************************************* कट्टरता की दीमक चाट गयी, आज बंगला देश को। भूल गये हो कैसे आज, मुक्ति वाहिनी के संदेश को॥ हिन्दू अस्थि भी शामिल है बंगाल की आजादी में। भारत माँ भी रोईं थी, चिटगाँव की बरबादी में॥ बंगलादेश की आजादी पर,मैं विजय दिवस मनाता हूँ॥ क्रान्ति पथ पर निकला हूँ मैं, वन्दे मातरम् गाता हूँ।। इस्लाम के नाम पर तूने, ये कैसा उत्पात मचाया... »
खत्म हुई कहानी आज
खत्म हुई है कहानी आज बरबाद हुई जवानी आज। दुल्हन बनके चली गई है मेरे दिल की रानी आज। नजरें झुका के रहती थी, तेरी हूँ हरदम कहती थी। गोद में सिर मैं रखता था, वजन वो मेरा सहती थी। छूट गया है उनका साथ,दिल में बाकी रह गयी याद। कानों पर गुंज रही है सिसकी भरी उसकी फरियाद । खत्म हुई कहानी…………………………… गीत प्यार के गाता हूँ, मैं तुमको भूल नहीं... »
वंदेमातरम् गाता हूँ
नारों में गाते रहने से कोई राष्ट्रवादी नहीं बन सकता। आजादी आजादी चिल्लाने से कोई गांधी नहीं बन सकता। भगत सिंह बनना है तो तुमको फांसी पर चढ़ना होगा। देश के लिए कुछ करना है तो हँसते-हँसते मरना होगा॥ संग आओ तुम भी मेरे, मैं सरहद पर गोली खाता हूँ। क्रांति पथ पर निकला हूँ मैं वंदेमातरम् गाता हूँ।। नारों में हम कहते हैं जम्मु और कश्मीर हमारा है। पंडित वहाँ से बेघर हो गये, क्या यही भाईचारा है।।अपमान तिरं... »
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला
ये माटी के खातिर होगे, वीर नारायण बलिदानी जी। ये माटी के खातिर मिट गे , गुर बालक दास ज्ञानी जी॥ आज उही माटी ह बलाहे, देख रे बाबु तोला। मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला॥ ये माटी मा उपजेन बाढ़ेन, ये माटी के खाये हन। ये माटी कारण भईया मानुस तन ल पाये हन॥ काली इही माटी मिलही, तोर हमर ये चोला। मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बंसती चोला।। पुराखा हमर ज्ञानी रीहीस अऊ अबड़ बलिदानी जी। भंजदेव ... »
मैं अपनी मर्जी से नहीं आया था
बाबा साहेब की १२५ जंयती पर शुभकामनाएं मैं अपनी मर्जी से नहीं आया था न उनकी मर्जी से जाऊंगा। युग-युग तक सांसे चलेंगी अब, मैं विचारों में जिवित रह जाऊंगा। गर आ जाए मृत्यु सम्मुख मेरे मैं तनिक नहीं घबराऊंगा। किताबों की गठरी खोल, यमदुतों को पढ़ाऊंगा। ओमप्रकाश चंदेल”अवसर” रानीतराई पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़ 7693919758 »
नमो नमो नमो बुद्धाय
नमो नमो नमो बुद्धाय। मन हमारा शुद्ध हो जाए। कठोर वाणी त्याग दें। सत्य सबको बांट दे। कमजोरों को हाथ दें। निर्धन का हम साथ दें। अपंग के गले लग जाएं। नमो नमो नमो बुद्धाय। विचार में प्रकाश हो। करुणा पर विश्वास हो। ज्यादा की नहीं आश हो। ज्ञान हमारे पास हो। दया धर्म हम अपनाएं। नमो नमो नमो बुद्धाय।। मद से हमारा नाता न हो। झूठ हमको आता न हो। पाप से हम सब दूर रहें। कर्मों से हम सब सूर रहें।। थोड़े में ही... »
नारी बता दिया
मुझ जैसी भोली भाली को, “काली” बता दिया । झाङु ,पोछा, छितका की तो, घर वाली बता दिया । सज संवर के निकली तो मतवाली बता दिया । रोती बिलखती गुङिया को दिलवाली बता दिया । तिनका मांगने से, नखरे वाली बता दिया । बैठ गई अगर चौराहे पर गाली बता दिया । जिवित रहने दिया नहीं, अवतारी बता दिया । हक देने के डर से ही मर्दों ने, “ना” “री” बता दिया ।।……. ओमप्रकाश चन्देल &... »
आज अवध में होली है और , मैं अशोका बन में
आज अवध में होली है और, मैं अशोका बन में। रंग दो मोहे राजा राम , मैं बसी हूँ कन कन में।। आँखे रोकर पत्थर हो गयी, आँसू से भरे सागर। तुम भी देख लेना साजन, हालत मेरी आकर।। छोड़ आई हूँ सासें रसिया, तेरे निज चरणन में। आज अवध में होली है और , मैं अशोका बन में॥ याद आती है मिथला की बोली, और अवध होली। छोड़ के अपनी सखी, सहेली , मैं रह गयी अकेली॥ तेरे दम पर चली थी घर से, बिछड़ गयी कानन में। आज अवध में होली है... »
मैं बच्चा बन जाता हूँ
कविता … “मैं बच्चा बन जाता हूँ” न बली किसी की चढ़ाता हूँ। न कुर्बानी से हाथ रंगाता हूँ। रोने की जब दौड़ लगती है, मैं गिद्धों पर आंसू बहाता हूँ। न मैं मंदिर में जाता हूँ। न मस्जिद से टकराता हूँ। ईश्वर मिलने की चाहत में, मैं विद्यालय पहुँच जाता हूँ। छोटे-छोटे कृष्ण, सुदामा, पैगम्बर, बुद्ध मिल जाते हैं। हमसे तो बच्चे ही अच्छे, जो एक ही थाली में खाते हैं। जाति, धर्म का ज्ञान नहीं बच्चे मन के सच... »
जब हम बच्चे थे
जब हम बच्चे थे , चाहत थी की बड़े हो जायें | अब लगता है , कि बच्चे ही अच्छे थे || अब न तो हममें कोई सच्चाई है , न ही सराफ़त , पर बचपन मे हम कितने सच्चे थे | जब हम बच्चे थे || अब न तो गर्मी कि छुट्टी है , न ही मामा के घर जाना , माँ का आँचल भी छूट चुका है , पापा से नाता टूट चुका है , पहले सारे रिस्ते कितने सच्चे थे | जब हम बच्चे थे|| न तो कोई चिंता थी , बीबी बच्चे और पेट की, न ही कोई कर्ज़, बैंक ,एलआईसी... »
मेरा रंग दे बसंती चोला
जिस चोले को पहन भगत सिंह खेले, अपनी जान पे जिसे पहन कर राज गुरु मिट गए, अपनी आन पे आज उसी को पहन के देश का बच्चा, बच्चा का बोला मेरा रंग दे बसंती चोला, माई रंग दे बसंती चोला ओमप्रकाश चंदेल “अवसर” 7693919758 »
खो गई मिट्टी की लाली
सोमवार, 17 अगस्त 2015 कविता …..खो ग ई मिट्टी की लाली……… खो गई है मिट्टी की लाली। मुरझा गई है धान की बाली॥ सुख गई है बरगद की डाली उजड़ी बगिया रोता माली॥ खो गई है गिद्धों की टोली। गुमसुम है कोयल की बोली।। उठ गई गॊरिया की डोली । राजहंसनी को लगी है गोली॥ उठी गर्जना भूकंप वाली। बादल फूटा बरसा पानी।। बह गई बस्ती भुमि खाली। कंजूस हो गया पर्वत दानी।। लुट रही जंगल की झोली । स... »
अपने काम आप करो
……कविता……. अपने काम, आप करो, मजदूरों को माफ़ करो। रहना है, अगर ठाठ से; तो साफ-सुथरा इंसाफ करो। हमको तुम, माफ़ करो, अपना, मन साफ़ करो। अपनाना है, अगर हमें; तो पहले सीधे मुँह बात करो। अपने दिल पर हाथ रखो, फ़िर प्यार की बात रखो। अब हमसे, मत कहना, अच्छे दिन पर विश्वास रखो । अब और नहीं सौगात रखो, मेहनत का अहसास रखो । और नहीं, चमकाना मुझे, कपड़े ,बर्तन अपने पास रखो। वेतन की नह... »
छप्पर उड़ गई है मिट्टी की दीवारों से
कविता … “ प्रेम ही बांटो हरदम, आप अपने सूझ-बुझ से” छप्पर उड़ गई है, मिट्टी की दीवारों से। तूफाँ भी मांग रही है मदद, कामगारों से।। कट्टरता की बू आती है, अब बयारों से। मुर्दे फिर से जी उठे हैं, धार्मिकता नारों से।। रोशनी की चाहत है, चिता के अंगारों से। मोह भंग हुआ क्यों? दीपक के उजियारों से।। संदेशा कह देना मैना, तैयार रहे कहारों से। आग कहीं ... »
सिर पर जूता पेट पर लात
सिर पे जूता, पेट पे लात। दिल खट्टा और मीठी बात॥ नियम, कानून अमीरों का, अपने तो बस खाली हाथ॥ पूछ परख लो भूखों से क्या है तुम्हारी जात? पेट भरो बातों से, गोदाम तले रखो अनाज। मजबूरी है मजदूरी मेहनत का नहीं देना दात। वादों से क्या भूख मिटे या चूल्हों में जलती आग।। वोट मांग लो हमसे पर रहने दो यह सौगात। नारों से क्या तन ढक लें? समझ गये तुम्हारी बात।। उठो, बैठो, सब करो स्वांग रचा लो सारे आज। फर्क नहीं पड... »
रविदास को गुरु बनाकर हम भी मीरा बन जाएं
रविदास को गुरु बनाकर हम भी मीरा बन जाएं। द्वेष -कपट सब त्याग कर आज फकीरा बन जाएं। कोयला जैसा मन लेकर भटक रहा है मारा-मारा ज्ञान अगर मिल जाए तो संवर जाएगा कल तुम्हारा। रविदास के संग चलें और हम भी हीरा बन जाएं। रविदास को गुरु बनाकर हम भी मीरा बन जाएं।। क्रोध को तुम छोड़कर करम करो प्यारा-प्यारा। एक दुजे के गले लगो तो जग प्रसन्न होगा सारा। अंधकार को दुर भगा कर हम उजियारा बन जाएं। रविदास को गुरू बना कर... »
लौट आओ अपने खेतों पर
लौट आओ अपने खेतों पर अब हरित क्रान्ति लिख देंगे। उजाड़ गौशाला को सजाकर अब श्वेत क्रान्ति लिख देंगे। फिर से नाम किसानों का लाल बहादुर शास्त्री लिख देंगे। अपनी लहू सिंचित करके माटी को अन्नदात्री लिख देगे॥ कर्ज से तुम मत घबराना धान की बाली से वादी लिख देंगे। गेहूँ मक्का गन्ना जौं की फसलों को सोना चांदी लिख देंगे॥ बीती बात बिसार दो नई तकनीकों से अमिट कहानी लिख देंगे। खेतों पर तपने वाली माँ, बहनों को... »
न्याय बीमार पड़ी है, कानून की आँख में पानी है
अत्याचार दिन ब दिन बढ़ रहे हैं भारत की बेटी पर। रो-रो कर चढ़ रही बिचारी एक-एक करके वेदी पर ।। भिलाई से लेकर दिल्ली तक प्रतिदिन नई कहानी है। किसने पाप किया है ये, किसकी ये मनमानी है।। गली-गली, बस्ती-बस्ती में निर्भया बलिदानी है। न्याय बीमार पड़ी है अब, कानून की आँख में पानी है।। स्कुल-कालेज, आफिस, घर, सभी जगह पर खतरा है। मानवता तो अब मर रही है सड़को पर सन्नाटा पसरा है।। कभी-कभी मर्दाना पुलिस औरतों... »
होली, रुत पर छा गयी है
होली, रुत पर छा गयी। मस्तों की टोली आ गयी।। लाज़ शरम तुम छोड़ो। आज मुख मत मोड़ो।। दिल को दिल से जोड़ो। झूम कर अब बोलो॥ होली, रुत पर छा गयी है। मस्तों की टोली आ गयी है।। यार को गले लगा लो। रंग गुलाल उड़ा लो।। मनमीत को बुला लो। प्रीत से तुम नहा लो।। फागुन में मस्ती छा गयी है। होली, रुत पर छा गयी है। बैठ के फाग गा लो । आज नंगाड़ा बजा लो।। गोरी को भी बुला लो। गालों पे रंग लगा लो। उसकी बोली भा गयी है। ... »