मैं लिखता हूँ मोहब्त
मैं लिखता हूँ मोहब्त को …
मोहब्त की कलम से….
मैं भरता हूँ अपने ज़ख्मो को ..
उसकी यादों की मरहम से…
कुछ ही महफूज़ बची हैं , सांसे मेरी ….
मैं ज़ी रहा हूँ आज …
तो बस उसकी दुआओं के रहम से…
पंकजोम प्रेम
मैं लिखता हूँ मोहब्त को …
मोहब्त की कलम से….
मैं भरता हूँ अपने ज़ख्मो को ..
उसकी यादों की मरहम से…
कुछ ही महफूज़ बची हैं , सांसे मेरी ….
मैं ज़ी रहा हूँ आज …
तो बस उसकी दुआओं के रहम से…
पंकजोम प्रेम
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ek achi kavita
kya baat he….bahut khoob pankaj
Dhnyawad sumit bhai
bahut achi kavita!
nice poetry…
Sukkriya panna ji
well said Pankaj!
Sukkriya ji
Good