वरना कौन अपनी नाव देता है………………
पत्ता-पत्ता हिसाब लेता है
तब कहीं पेड़ छांव देता है।
भीड़ में शहर की न खो जाना
ये दुआ सबका गांव देता है।
हम भी तो डूबने ही निकले थे
वरना कौन अपनी नाव देता है।
किसी उंगली में जख्म देकर ही
कोई कांटा गुलाब देता है।
जहां बिकेगा बेच देंगे ईमां
कौन मुहमांगा भाव देता है।
जान देने का हौंसला हो अगर
फिर समंदर भी राह देता है।
जिंदगी दे के ले के आया हूं
कौन यूं ही शराब देता है।
प्यार खिलता है बाद में जाकर
पहले तो गहरा घाव देता है।
~~~~~~~~~~~~~~–सतीश कसेरा
कहो न कहो मोहब्बत की बातें
एक न एक दिन जमाना जान (knew and life) लेता है
जानकर भी अनजान बनते है लोग इस दुनिया में
अनजानो के शहर में इन्सान अपनी जान देता है
Thanks Panna
Thanks Mohit
Good