वज़ह कुछ नहीं फिर भी
वज़ह कुछ नहीं फिर भी
अंदर कुछ नहीं फिर भी
धर्म क्या मैं जानता नहीं
सबसे आगे खड़ा फिर भी
जन्नत तो कोई ख्वाब है
गर्क ज़िंदगी हुई फिर भी
जुल्म अपने पे ही ढाये
सजा औरों को दी फिर भी
चलते रहने का राज न पूछों
मसले कन्धों पे रहे फिर भी
राजेश’अरमान’
वाह