शाम ढलती रही…

शाम ढ़लती गयी शम्अ जलती रही..

और तबीयत हमारी  मचलती रही  ..

 

मेरी हालत की उनको ख़बर तक न थी

उम्र आहिस्त करवट बदलती रही

 

उनसे तर्के ताअल्लुक़ को अरसा  हुआ

गोश-ए- दिल मॆं इक   याद पलती  रही

 

दर्द  गहरे समंदर के सीने मॆं  थी

मौज अफ़सोस से हाँथ मलती रही

 

जैसे  कश्ती मचलती हो गर्दाब मॆं

जिंदगी  यूँ हि आरिफ कि चलती रही

 

आरिफ जाफरी..

 

गर्दाब-  भँवर

गोश-ए-दिल- दिल के जगह

 

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