सईयां की डोर

रख दो तुम मेरे लिए दुनिया भर के सोने-चांदी ,
पर मैं ना छोड़ू अपने सईयां की डोर।

प्रेम के मंदिर में यह पुजारन उनकी पूजा है कर रही ,
प्रेम के मनके चुन चुन के प्रेम की माला मन में है बुन रही ,
हो गयी है वो बाबरी , जग  की झूठी माया से अब उसे कोई मोह नहीं।
बन गयी है वो जोगन , सईयां से बढ़कर अब कोई धर्म नहीं।

अपना इक इक पल मैं अब मैं बस तेरे साथ चाहूँ ,
चौबीस पहर तेरे इस चाँद से चेहरे को निहारूँ।
रग-रग में मैं तुझे बसा लूँ , जुड़ जाएँ ऐसे हमारे नाम ,
जैसे श्याम के बाद लिया जाता है राधा का नाम।

रख दो तुम मेरे लिए दुनिया भर के सोने-चांदी ,
पर मैं ना छोड़ू अपने सईयां की डोर।

–    – अभिषेक शर्मा

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