सत्य

सच स्वयंसिद्ध होता है, हाँ तुम झूँठ स्वयं रच सकते हो।

सच का छिपना नामुमकिन, बस कुछ दिन इससे बच सकते हो॥

झूँठ की दुनिया सब अपनी सुविधा अनुसार बनाते हैं।

निज मन से तर्क चयन करते किस्सा मनगढ़त बताते हैं॥

सच दोधारी तलवार सरिस मुश्किल इसको धारण करना।

निष्ठुर सच की कड़वाहट संग मीठे मिथ्या से रण करना॥

सूर्यरश्मि सम सत्य से बरबस झूँठ का तम छँट जाता है।

सत्य भले हो त्रस्त दीर्घ तक विजय अंततः पाता है॥

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शिवकेश द्विवेदी

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