“सोचती हूँ, क्या लिखूं…?”

सोचती हूँ, क्या लिखूं…?
कोई ग़ज़ल, या शायरी लिखूं…?
या कोई क़िस्सा लिखूं प्रेम कहानी का..,
जिसमें मैं ख़ुद को “तुम्हारी” लिखूं ।।

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जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

क्या लिखूँ…!!

आज सोंचती हूँ क्या लिखूं दर्द लिखूं या मोहब्बत का उन्माद लिखूं चैन लिखूं या बेचैनी लिखूं तेरे इश्क में फना होने का अफसाना लिखूं…

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