धरती माँ फिर त्रस्त हुई हैं
आतंकी गद्दारों से,
खेल लाल रंग की होली अब,
धरती माँ को मुक्त करो,
बढ़ो वीर तुम खूब लड़ो अब,
इन दुश्मन मक्कारों से,
धरती माँ फिर त्रस्त हुई है आतंकी गद्दारों से॥
घाटी में घट घट में फैले
आतंकी शैतानों को,
मार गिराओ इस माटी के,
घुसपैठी गद्दारों को,
धरती माँ फिर त्रस्त हुई है आतंकी गद्दारों से॥
बढ़ो वीर तुम आगे बढ़कर,
आतंकी टेंक को नष्ट करो,
फेहराकर घाटी में विजय तिरंगा,
आतंकी मनसूबा ध्वस्त करो,
धरती माँ फिर त्रस्त हुई है आतंकी गद्दारों से॥
राही (अंजाना)