हमारा हिंदुस्तान ….. बक़ौल; मेरा देश महान !

यह हिन्दुस्तान है ………………………………………..
कहना आसान — समझना मुश्किल — सहेजना असंभव
फिर भी हमें ये गुमान है
गांधी का अरमान है — सपनों का जहान है
————-मेरा देश महान है————–
……………….. क्या, यही ‘वो’ हिन्दुस्तान है ?

ज्वालामुखी हर सीने में, हर आंख से रिसता लावा ,
हर मंदिर—मस्ज़िद–गिरिजा पर, धर्मान्धता का धावा ,
चारों ओर ….पोर–पोर….आक्रोश का सैलाब बह रहा है
देखिए ! ग़ौर कीजिए,…….‘आस्था का महल’ ढह रहा है.

सिमटी आस्थायें —- बिखरा विश्वास,
कुटिल वार्तायें —- गुमशुदा अहसास,
लहू और फ़रेब से लिखा गया : इतिहास,
आंसूओं से तर — ब — तर : वर्तमान
आशंका से जूझता : भविष्य
बस , यही तो ‘शेष’ पहचान है
: ये कैसा भारत महान है ?
क्या : यही ‘वो’ हिन्दुस्तान है ??

लोकतंत्र की गाय ‘भूख’ से मर रही है,
बे–लगाम व्यवस्था, शान से ‘चारा’ ‘चर’ रही है.

बेकाम हाथ—खाली पेट—-सूनी आंखें,
सारी जनता सहमी है, सच कहने से डर रही है,
: विकास की सदी, अविश्वास के दौर से गुज़र रही है.

‘सत्ता का धृतराष्ट्र’, फेंकता है : नोट ,
‘दलालों का शकुनी’, बटोरता है : वोट ,
बिकता है लाचार मतदाता———-
ग्राम्यदेवता — भारत भाग्य विधाता.

‘ वे ’ गिध्द की तरह मंडराते हैं,
हमें नोंचते ………….. डराते हैं,
क्योंकि , हमारे पास ‘थाली’ है, उनकी ‘भूख’ निराली है,
हमें “रोटी की तलाश” है, ———————–
उनके लिए “लोकतंत्र; एक ज़िंदा—लाश” है,
आईए ! आप भी आईए, जितना छीन सकें : खाईए,
: सामूहिक भोज का आयोजन् है,
: जनतंत्र का यही तो प्रयोजन् है .

मुझे खेद है ……………………….,
आपको भी होगा, शायद !
विगत् अर्द्ध–शती में, हमें ये कैसा भारत मिला ?
यहां की प्यासी–दूषित् नदियां —– रेतीली मांग सजाए ,
: सपने बहाती हैं
बीमार नहरें —- सूखे खेतों में —- आंसू भर जाती हैं.
किसान, लालटेन लटकाए, बिजली को खोजते हैं,
खेतों में धान की जगह, ‘कुकुरमुत्ते’ रोपते हैं.

साज़िश और शिक़स्त, अंतर्कलह से ग्रस्त ,
सदमा या सहानुभूति, भयजनित् प्रीति
: इसे ही कहते हैं, ज़नाब !
बिना शर्त समर्थन् की राजनीति.

हर कटते दरख्त के साए में एक मज़हब पनपता है ,
हर मज़हब का बन जाता है, एक नया दल,
हर दल में भीषण ‘दल—दल’ सने ‘सफे़दपोश’ नेता,
हर नेता की अबूझ——महत्वाकांक्षा का ‘महल’
‘ हरम के हरामियों’ की तरह, ये कुटिल खेल में व्यस्त हैं
‘ गठबंधन की मुस्कुराती हुई राजनीति’ में
पारंगत् हैं ————————–अभ्यस्त हैं .

किसे चिंता है , ……. : संविधान मात्र एक पुलिन्दा है ,
: ‘वर्ण – भेद’ “आज भी ज़िन्दा है”.

मज़बूरी के तवे पर, सिंक रही; स्वार्थ्य की रोटियां ,
जूठी बोटियों पर झपटते है : लोग ,
मुंह बाए खड़ी है : चुनौतियां .

‘जन—प्रतिनिधि—सभा’ : एक अखाड़ा है ,
बहुमत : कमजोर–सा नाड़ा है
वे जब भी जूझते हैं —– इसे ही तो खींचते हैं
तब व्यवस्था : पूरी तरह ‘नंगी’ नज़र आती है
‘ वे’ तो इसके आदी हो चले हैं, ज़नाब !
मगर, ………………… हमें तो शर्म आती है.

हमारा ‘मतान्तर’ ही छलता आया है, आज तक हमें
अगर मेरी ‘अपील’ आपको जमे, तो मत रहिए : अनमने
कभी तो ‘सार्थक पहल’ कर,
‘सही निर्णय’ हम ले सकें अगर
गर्वोन्नत् होगा मस्तक हमारा,
देगा वैभव—दस्तक दोबारा
मन—मन में फिर खिल उठेगा अभिमान,
जन—जन में होगा गुंजायमान
मेरा भारत महान
मेरा भारत महान.

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close