ग़ज़ल

इक समंदर यूं शीशे में ढलता गया । ज़िस्म ज़िंदा दफ़न रोज़ करता गया ॥ ख़्वाब पलकों पे ठहरा है सहमा हुआ । ‘हुस्न’ दिन-ब-दिन…

ग़ज़ल

  तेरा — मेरा इश्क पुराना लगता है । दुश्मन हमको फिर भी जमाना लगता है ॥ गुलशन – गुलशन खुशबू तेरी साँसों की ।…

अ–परिभाषित सच !

॥ बेटी के लिए एक कविता ॥  “अ—परिभाषित सच !” डरते—सहमते—सकुचाते मायके से ससुराल तक की अबाध—अनिवार्य यात्रा करते हुए मैंने; गांठ बांधी पल्लू से…

ग़ज़ल

वो ख़्वाब; वो ख़याल, वो अफ़साने क्या हुए । सब पूछते हैं लोग; वो दीवाने क्या हुए ॥ अपनों से जो अज़ीज़ थे आधे—अधूरे लोग…

ग़ज़ल

बंधु ! शक्ति–स्वरूपा माँ दुर्गा की आराधना के अकल्पनीय दिवस और अंतत: वैभव एवं विजय के पर्व ‘दशहरा’ पर मन–मानस में व्याप्त ‘लोभ–मोह–आघात’ के प्रतीक…

ग़ज़ल

2.01(63) मैं ! तुझे छू कर; ‘गु…ला…ब’ कर दूँगा ! ज़िस्म के जाम में, ख़ालिस शराब भर दूँगा !! तू; मेरे आगोश में, इक बार…

ग़ज़ल

ज़िंदगी को इस—–तरह से जी लिया । एक प्याला-–फिर; ज़हर का पी लिया ॥ वक़्त के सारे  ‘थ…पे…ड़े’  सह लिए । गम जो बरपा, इन…

ग़ज़ल

मैं ! जटिल था ; आपने , कितना सरल-सा कर दिया । सोचता हूँ ; शुष्क हिमनद , को तरल-सा कर दिया ॥ खाली सीपों…

ये, अंदर की बात है !

  हनीमून-टूर पर नवयुगल ने , हिल-स्टेशन के आलीशान होटल में : आनन्दपूर्वक सुहागरात मनाई बिदाई में ‘रिटर्न-गिफ़्ट’ के बतौर, होटल-प्रबंधन से एक ‘सी.डी.’ पाई…

सामूहिक विवाह

सामूहिक विवाह का आयोजन था कम खर्च में–ज़्यादा निपटें यही असली प्रयोजन था चारों ओर हा….हा……..कार मचा था “ मे……………..ला ” — सा लगा था…

सड़क का सरोकार

।। सड़क का सरोकार ।। : अनुपम त्रिपाठी सड़कें : मीलों—की—परिधि—में बिछी होती हैं । पगडंडियां : उसी परिधि के आसपास छुपी होती हैं ॥…

ठिठोली

[बुरा न मानो होली है ….. शुभकामनाओं सहित ] आया जोबना पे कैसा उभार दैया । गोरी कैसे सम्हालेगी भा…र दैया ।। पूनम के चांद–सा…

ग़ज़ल

“ हद से बढ़ जाए कभी गम तो ग़ज़ल होती है । चढ़ा लें खूब अगर हम तो ग़ज़ल होती है ॥“ इश्क़ है—रंग ,…

ग़ज़ल

ग़ज़ल : अनुपम त्रिपाठी इक शख्स कभी शहर से ; पहुँचा था गाँव में । अब रास्ते सब गाँव के ; जाते हैं शहर को…

ग़ज़ल

ये माना कि ; मैं तेरा ख्बाब नहीं हूँ । मगर फिर भी ; इतना ख़राब नहीं हूँ ।। नशे–सा मैं; चढ़ता–उतरता नहीं । सुराही…

ग़ज़ल

फिर वही अफ़रा– तफ़री; उच्च—स्तरीय मीटिंग । गूंगे–बहरे–लाचारों की; देश के साथ :  चीटिंग ।। फिर कोरी धमकी की भाषा; रोज़ नया खु….. ला…..सा। फिर…

मित्र कौन !

  सच्चा मित्र —— होता है : संघरित्र ! आपसे जुड़कर—आपका विषाद बाँटता है आपकी ऊष्मा आत्मसात् करता है ……….. आपको ऊर्जा से भरता है.…

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