आग कहाँ नहीं होती !
( संदर्भ आपातकाल ) ‘वे’ चंद लोग थे जो, आए और ज़ब्त करने लगे आग के संभावित ठिकाने । —– रौशनी गुल कर दी —–…
( संदर्भ आपातकाल ) ‘वे’ चंद लोग थे जो, आए और ज़ब्त करने लगे आग के संभावित ठिकाने । —– रौशनी गुल कर दी —–…
[01] आज का गीत आज का गीत, कुछ इस तरह बना ! मानो किसी बदन पर बेशुमार हुस्न संवरा शब्द : लुभावने तिल की तरह…
तुम नहीं, तो…… ! : अनुपम त्रिपाठी तुम नहीं; तो ग़म नहीं । ये भी क्या कुछ कम नहीं ।। तुम जो थे, तो ये…
इक समंदर यूं शीशे में ढलता गया । ज़िस्म ज़िंदा दफ़न रोज़ करता गया ॥ ख़्वाब पलकों पे ठहरा है सहमा हुआ । ‘हुस्न’ दिन-ब-दिन…
कविता उम्र की पतंगें : अनुपम त्रिपाठी वे, बच्चे ! बड़े उल्हास से चहकते—मचलते; पतंग उड़ाते …………. अचानक थम गए !! उदास…
बंधु ! आज स्व. राजीव गांधी की पुण्य—तिथि है। एक सपना और उसमें समाहित लालसा का स्मरण दिवस। हार्दिक श्रुद्धांजलि के साथ एक व्यक्ति —…
॥ “ यादों के जुगनू “ ॥ वह लड़की ! : न भूली होगी मुझे : न भुलाई गई मुझसे वह लड़की जानती है…
तेरा — मेरा इश्क पुराना लगता है । दुश्मन हमको फिर भी जमाना लगता है ॥ गुलशन – गुलशन खुशबू तेरी साँसों की ।…
॥ बेटी के लिए एक कविता ॥ “अ—परिभाषित सच !” डरते—सहमते—सकुचाते मायके से ससुराल तक की अबाध—अनिवार्य यात्रा करते हुए मैंने; गांठ बांधी पल्लू से…
॥ नाक का नक़्क़ारखाना ॥ सोचिए जरा ! क्या होता, अगरचे इन्सान की नाक न होती ? सर्वप्रथम तो आधी दुनिया अंधी होती नाक न…
वो ख़्वाब; वो ख़याल, वो अफ़साने क्या हुए । सब पूछते हैं लोग; वो दीवाने क्या हुए ॥ अपनों से जो अज़ीज़ थे आधे—अधूरे लोग…
बंधु ! शक्ति–स्वरूपा माँ दुर्गा की आराधना के अकल्पनीय दिवस और अंतत: वैभव एवं विजय के पर्व ‘दशहरा’ पर मन–मानस में व्याप्त ‘लोभ–मोह–आघात’ के प्रतीक…
2.01(63) मैं ! तुझे छू कर; ‘गु…ला…ब’ कर दूँगा ! ज़िस्म के जाम में, ख़ालिस शराब भर दूँगा !! तू; मेरे आगोश में, इक बार…
ज़िंदगी को इस—–तरह से जी लिया । एक प्याला-–फिर; ज़हर का पी लिया ॥ वक़्त के सारे ‘थ…पे…ड़े’ सह लिए । गम जो बरपा, इन…
“ यादों की यलगार “ नहीं आती याद तुम्हारी ! गोयाकि ; भूला भी नहीं मैं : तुम्हें !! मंडराती रहीं कटी पतंग-सी : तुम…
यह हिन्दुस्तान है ……………………………………….. कहना आसान — समझना मुश्किल — सहेजना असंभव फिर भी हमें ये गुमान है गांधी का अरमान है — सपनों का…
***************************** “ कहते हैं ज़माने में सिला; नहीं मिलता मुहब्बत का । हमको तो मुहब्बत ने; इक हसीं दर्द दिया है ॥ “ : अनुपम…
यह गीत धरा का धैर्य गर्व है, नील–गगन का यह गीत झरा निर्झर-सा मेरे; प्यासे मन का …. यह गीत सु—वासित् : चंदन–वन…
।। बंजारा – गीत ।। : अनुपम त्रिपाठी कोई ख्वाब नहीं, जो ढल जाऊॅं । मौसम की तरह से बदल जाऊॅं ॥ तबियत से हूँ…
मैं ! जटिल था ; आपने , कितना सरल-सा कर दिया । सोचता हूँ ; शुष्क हिमनद , को तरल-सा कर दिया ॥ खाली सीपों…
ओ; तट पर बैठे, तटस्थ लोगों ! सुनो, मेरे सन्मुख ; लक्ष्य है —- राह नहीं है मैं; धारा पर धारा—प्रवाह मुझे विराम की चाह…
हनीमून-टूर पर नवयुगल ने , हिल-स्टेशन के आलीशान होटल में : आनन्दपूर्वक सुहागरात मनाई बिदाई में ‘रिटर्न-गिफ़्ट’ के बतौर, होटल-प्रबंधन से एक ‘सी.डी.’ पाई…
सामूहिक विवाह का आयोजन था कम खर्च में–ज़्यादा निपटें यही असली प्रयोजन था चारों ओर हा….हा……..कार मचा था “ मे……………..ला ” — सा लगा था…
।। सड़क का सरोकार ।। : अनुपम त्रिपाठी सड़कें : मीलों—की—परिधि—में बिछी होती हैं । पगडंडियां : उसी परिधि के आसपास छुपी होती हैं ॥…
[बुरा न मानो होली है ….. शुभकामनाओं सहित ] आया जोबना पे कैसा उभार दैया । गोरी कैसे सम्हालेगी भा…र दैया ।। पूनम के चांद–सा…
“ हद से बढ़ जाए कभी गम तो ग़ज़ल होती है । चढ़ा लें खूब अगर हम तो ग़ज़ल होती है ॥“ इश्क़ है—रंग ,…
तब, जबकि कल ; बहुत छोटी थी ‘मैं’ कहा करती थी ‘माँ’ ——- ऐसा मत करो ! ——- वैसा मत करो !! : वरना लोग…
सपनों में बच्चे देखना सुखद हो सकता है ; लेकिन ; बच्चों में सपने देखना आपकी भूल है जैसे; सपने…… सिर्फ़ सपने बच्चे : साकार…
जब अंधे;आपस में मिल बैठकर , : संध्या बांचते हैं कुत्ते : पत्तल चाटते हैं……….. यही तो है ; हमारी व्यवस्था ! कि; अंतिम पंक्ति…
सत्ता और सुन्दरी एक ही सिक्के के दो पहलू दोनों का चरित्र : दलबदलू इक- दूजे के बिना अधूरे दोनों प्रतिबध्द परस्पर पूरे आदमी के…
किसी नदी का सिर्फ़ नदी होना ही पर्याप्त नहीं होता ॰ किसी भी नदी का जीवन बहुत लंबा नहीं होता बेशक; लंबा हो सकता है…
बेशक; तुम खरीद लोगे! ……………… बिछाओगे निचोड़ कर फेंक दोगे; मुझे : एक हिकारत के साथ….. लेकिन; फिर भी हार जाओगे ! हाँफती साँसों से…
तुम ! किसी दुर्दम्य वासना में क़ैद छटपटातीं रहीं जल — हीन मछली सी ……. और मैं ; तमाम वर्जनाओं में घिरा मोम–सा पिघलता रहा…
ग़ज़ल : अनुपम त्रिपाठी इक शख्स कभी शहर से ; पहुँचा था गाँव में । अब रास्ते सब गाँव के ; जाते हैं शहर को…
व्यंग्य …………………………………… ****** पूंछ— पुराण (समग्र)****** कभी देखा है ;आपने , ऐसा कुत्ता ! जो ; देखने में हो छोटा–सा मगर;पूंछ उसकी लंबी हो यानि…
ये माना कि ; मैं तेरा ख्बाब नहीं हूँ । मगर फिर भी ; इतना ख़राब नहीं हूँ ।। नशे–सा मैं; चढ़ता–उतरता नहीं । सुराही…
फिर वही अफ़रा– तफ़री; उच्च—स्तरीय मीटिंग । गूंगे–बहरे–लाचारों की; देश के साथ : चीटिंग ।। फिर कोरी धमकी की भाषा; रोज़ नया खु….. ला…..सा। फिर…
व्यंग्य गीत ———– अनुपम त्रिपाठी ” किस्सा–कुर्सी — का ” बचपन में किस्सों में कुर्सियों की बातें सुनते थे।आजकल कुर्सियों के किस्से आम हैं ।…
(हर पति की ओर से अपनी पत्नी के प्रति शाश्वत भावना एवं हर पत्नी की अपने पति के प्रति सारस्वत भावना को समर्पित् हास्य — रचना )…
गुस्ताखी माफ़ ! बच्चों के प्रश्न भी अज़ीब होते हैं ! मगर ; सच्चाई के कितने क़रीब होते हैं !! कल ही आधुनिक–भारत का सच…
सच्चा मित्र —— होता है : संघरित्र ! आपसे जुड़कर—आपका विषाद बाँटता है आपकी ऊष्मा आत्मसात् करता है ……….. आपको ऊर्जा से भरता है.…
लड़की ; पड़ी है : पसरी निगाहों के मरुस्थल में ………….धूप की नदी सी । लड़की का निर्वस्त्र शरीर सोने—सा चमकता है लोलुप निगाहों में…
कल अनायास मिला राह में दीन – हीन ; कातर याचक—सा खड़ा : सच उसने आवाज़ लगाई — “ मुझे रास्ता बताओ ….. भाई !…
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