हाथों की कलम

हुँ मै तेरी हाथों की कलम
गढ़ ले तु गीत नया जोगन।
हर शब्द हो तीर लक्ष्य भेदी,
मुक्त हो प्रेम का अटुट बंधन।

आँखो के कोरो मे बसा ले,
बना प्रित का स्वच्छ अंजन।
मधुर चमन खिले पाक ईश्क का
बागवां मे दहके सूर्ख सुमन।

मन मन्दिर मे बसुं बन मुरत,
खुशियों मे झुमे तेरी मुदित नयन।
हुँ मै तेरी हाथों की कलम।
गढ़ ले तु गीत नया जोगन

योगेन्द्र कुमार निषाद,घरघोड़ा (छ.ग.)

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