ख़त अधूरा सा कोई ,या हो अधूरा ख़्वाब
ज़िन्दगी में यक-ब-यक आ जाते हैं याद
आ जाते हैं हमें दिलाने कुछ अधूरी याद
उम्मीदों से भरकर,जज़्बातों से हो कर लबरेज़
चाहा था इन्हें,और चाहा था,करना इन्हें मुक़म्मल
चाहा था कभी जीना इनके साथ, हर वो लम्हात
सोचा था करना साथ इनके हवाओं में परवाज़
आज पूछते हैं ये सवालात ऐसे एहसासात के साथ
है शामिल शिक़ायत भी, शिक़वा भी है थोड़ा साथ
कुछ रूठे से ये हैं हमसे, एक ख़ुमारी भी है साथ
सोचने लगे हम भी क्या ग़फ़लत की थी बात
कब इन्हें भूले हम, कहाँ छूटा इनका साथ
याद इन्हें कर धड़कनों में भी रवानी आई
कुछ थोड़ा सा रुक-थम सा जाने के बाद
ठंडी सी एक साँस गुज़री सीने के पार
ये तो मंज़िल इनकी ना सोची थी जो है आज
क्या ये मुमकिन है, इन्साफ़ अब हो इनके साथ
अधूरे ही सही गुज़रते हैं जब भी ज़हन में आज
वजूद की अपने देकर गवाही यक़ीन भी होता साथ
ये अधूरे ख़त या हों आधे ख़्वाब या आधे जज़्बात
छोड़ जाते हैं ख़ला में साथ हमारे बस एक काश!
Nice poem… 🙂
Good
Waah waah
Very nice