ग़ज़ल
फिर वही अफ़रा– तफ़री;
उच्च—स्तरीय मीटिंग ।
गूंगे–बहरे–लाचारों की;
देश के साथ : चीटिंग ।।
फिर कोरी धमकी की भाषा;
रोज़ नया खु….. ला…..सा।
फिर से मुर्दा चेहरे चमके;
देते खूब दि….ला…..सा।।
फिर बूढों के अस्तबल में;
हुई थोड़ी सी : हलचल।
फिर सदमे में : सरहद;
माँ का लहूलुहान है : आँचल।।
आज बिलखते वे ही जिनने;
इस नासूर को पाला है।
आज चींखते वे ही जिनके;
दामन में इक छाला है।।
ये ही नेता कल कंधार तक;
आत्मसमर्पण करने गए थे।
संसद — हमले में ये नेता !
जाने छुपे—- कहाँ मर गए थे।।
आज चींखते जोर–शोर से;
घडियाली आंसू बरपाते।
अनचाहे अपने आँगन में;
नापाक़ बारूदें रच जाते ।।
अब शर्म करो ! कुछ शर्म करो !!
फर्ज़ पुकारता है माँ का।
ज़र्रा–ज़र्रा लहू में डूबा ;
देखो अपनी सीमा का ।।
चींख–चींख के भारतमाता;
कहती अब तो माफ़ करो।
आजादी को परिभाषा दो;
थोड़ा तो इंसाफ़ करो ।।
: अनुपम त्रिपाठी
#anupamtripathi
#anupamtripathiG
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nice 🙂
वाह
बहुत खूब पंक्तियाँ