अगर आह्वान करूं चांद का…
देखती हूँ चांद को –
लगता है बहुत भला ,
सोचती हूँ कईं बार –
अगर आह्वान करूं चांद का
क्या आएगा चांद धरती पर?
अगर आ भी गया
तो बदले में कन्या रत्न
ना थमा दे कही।
मगर उस कन्या का
होगा क्या हश्र।
इस धरती की पुत्री को
धरती मे समाना पड़ता है।
वो तो दूसरी
धरती से आयी होगी।
क्या होगा उसका।
यही सोचकर –
ड़र जाती हूँ ।
नहीं करती आह्वान
चंद्रदेव का।
हे चांद ! तुम
जहाँ हो वहीँ
भले हो मुझे……..
-पूनम अग्रवाल
bahut khoobsurat kavita Poonam ji