Categories: शेर-ओ-शायरी
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दीप ऐसा जलाओ
दीप ऐसा जलाओ ************************ *********************** दीप ऐसा जलाओ ऐ दिलबर हर तरफ रौशनी -रौशनी हो। न अमावस की हो रात काली हर निशा चांदनी -चांदनी…
इंतज़ार
सूरज भी ढल गया आँचल में , उठ गया घूंघट भी चाँद का कब आओगी ए जाने जिगर , टूट रहा है सब्र इन्तजार का…
मैं जुगनू हूँ दोस्त
अन्धेरा होकर भी अन्धेरा होता नहीं मेरे घर में, मैं जुगनू हूँ दोस्त रौशनी अपने साथ रखता हूँ।। राही (अंजाना)
केवट
समुंदर पार कर दो ए केवट प्रिय मेरे पार कर दो गंगा प्रिय लक्ष्मण भ्रात है साथ और है जनक दुलारी साथ जाना है चित्रकूट…
अन्धेरा
अँधेरे और रौशनी का कोई मलाल नहीं रखता, मैं ‘राही’ अपने दिल में कोई सवाल नहीं रखता।। राही (अंजाना)
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