आज वे भी चले गए
आज वे भी चले गए
उस यात्रा में
जहाँ से फिर कोई
लौट कर नहीं आता है।
अक्सर बीमार ही रहते थे
जब से सेवानिवृत होकर
घर लौटे थे,
तब से बीमार ही तो देखे थे।
हाँ बचपन में हमने देखा था उन्हें
जवान से,
घर आते थे जब अपनी ग्रेफ
रेजिमेंट से,
कितने हट्टे-कट्ठे पहलवान से।
हम कहते थे
पड़ौस के फौजी चाचा आये हैं
मिठाइयां लाये हैं।
पापा के भी जिगरी सखा थे
हमें अच्छी राह दिखाने वाले
सच्चे सरल कका थे
बचपन में ही रोजगार की खातिर
घर छोड़ा,
हिमालय और पूर्वोत्तर की
ठंडी चोटियों में तैनात होकर देश सेवा की।
रोगग्रस्त होने के वावजूद भी
मन से आनंदित रहने वाले
सबको स्नेह देने वाले
ऐसे परमानंद चचा थे
उन सा शायद ही कोई व्यक्ति हो
जो मन की पीड़ा को मन में ही पचा दे।
अंतिम विदाई पर उन्हें
कलम से श्रद्धांजलि है
ईश्वर के चरणों पर जगह
मिले उस पावन आत्मा को
कविता से श्रद्धांजलि है।
——— डॉ. सतीश पांडेय, चम्पावत
अतिब, अच्छी रचना
🙏🙏
मार्मिक
🙏🙏
मार्मिक चित्रण
🙏🙏
बेहद मार्मिक रचन वे भी चले गए
🙏🙏
ह्रदय स्पर्शी रचना
🙏🙏
सुन्दर
🙏🙏
🙏 भावपूर्ण श्रद्धांजलि
🙏🙏
Nice
🙏🙏
सुंदर रचना
🙏🙏