इन्सान और जानवर

कलूआ डोम श्मशान से लाश जला कर शाम के समय घर जा रहा था। अचानक किसी की आवाज़ उसके कानो में टकरायी।वह खड़ा हो कर चारो तरफ देखने लगा। उसे कहीं भी कुछ दिखाई नहीं दिया। कुछ क्षण पश्चात वह दो कदम आगे बढा ही था कि झाड़ी में एक बूढ़े गिद्ध को देखा। कलूआ –“सारा दिन मांस खाता ही रहता है। फिर भी शाम के समय टें टें करता ही र हता है “।गिद्ध–“भाई। मैं चार दिनों से भूखा हूँ। मुझे कहीं से भी इन्सान के मांस ला सकते हो? तुम्हारा अहसान मैं कभी नहीं भुलूंगा “।कलूआ इतना सुनते ही अचरज में पड़ गया। वह सोचने लगा एक गिद्ध मनुष्य की भाषा कैसे बोल सकता है। वह डर गया। दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा — “हे अदभुत रहस्य। आप कौन है “।गिद्ध –‘ मैं समस्त गिद्धों के राजा हूँ। मेरे जाति के सभी गिद्ध जानवर के मांस खा खा कर जानवरों जेसे बर्ताव करने लगे है।मैं अन्य गिद्धों की तरह जानवर के मांस खाना नहीं चाहता हूँ। मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। मैं अपना घर संसार व समाज को छोड़ चूका हूँ। अब इस बूढ़े शरीर में इतनी ताक़त नहीं कि मैं अपनी आहार स्वयं तालाश कर सकुं। क्या तुम मेरी मदद करोगे ? ”
शेष अगले अंक में

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