” एका त्योहार “

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दीवाली सा हर दिन लगे

दशहरे सी रात

होली जैसी दोपहरी

हो रोज खुशी की बात

पर, आज दीया जले आगजनी सा

रामराज में रावण पलता

गुलाल में है बारूद का असर

घड़ी-घड़ी अन्याय क्यों बढ़ता ?

हम सब ऐसा कदम उठाएँ

अब “एका त्योहार” मनाएँ

अन्याय जहां टिक न पाए

ऐसा एक नवभारत बनाएँ

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