ऐसा वक्त कहाँ से लाऊँ

कविता – ऐसा वक्त कहाँ से लाऊं
वेफिकरी की अलसाई सी उजली सुबहें काली रातें
हकलाने की तुतलाई सी आधी और अधूरी बातें
आंगन में फिर लेट रात को चमकीले से तारे गिनना
सुबह हुए फिर सबसे पहले पिचगोटी का कंकड़ चुनना
मन करता है फिर से मैं एक छोटा बच्चा बन जाऊं
जो मुझको बचपन लौटाए ऐसा वक्त कहाँ से लाऊं.

बारिश के बहते पानी में छोटी कागज नाव चलाना
आंगन में बिखरे दानों को चुंगती चिड़िया खूब उड़ाना
बाबा के कंधों पर बैठके दूर गाँव के मेला जाना
मेले में जिद करके उनसे गर्मागर्म जलेबी खाना
मन करता है फिर से मैं नन्हों संग नन्हा बन जाऊं
जो मुझको बचपन लौटाए ऐसा वक्त कहाँ से लाऊं.

मिट्टी के और बालू बाले छोटे प्यारे घरों का बनना
खेतों से चोरी से लाये चूसे मीठे मीठे गन्ना
माँ ना देखे दावे पाँव से हो जाए उन छतों का चढना
पकड़े जाएँ तो फिर माँ से झूठीमूठी बातें गढ़ना
मन करता है फिर से में झूठों संग झूठा बन जाऊं
जो मुझको बचपन लौटाए ऐसा वक्त कहाँ से लाऊं.

झूठमूठ का झगड़ा करके बात बात पर खूब सा रोना
मान गए तो पल में खुश हों न माने तो चुप न होना
घरवालों से रूठ रूठ कर अपनी सब बातें मनवाना
पढने का नम्बर आया तो लगा दे फिर कोई बहाना
मन करता है फिर से मैं रूठों संग गुस्सा हो जाऊं
जो मुझको बचपन लौटाए ऐसा वक्त कहाँ से लाऊं.

रात हुए जल्दी से सोना सुबह हुए फिर देर से उठाना
खेलों से मन खुश होता है पढने से हो जाए थकना
माँ मुझको गोदी में ले लो बन जाऊं मैं तेरा ललना
पहले ला दो मेरा पलना फिर तुम मेरा पंखा झलना
मन करता है फिर से मैं एकबार फिर जन्मा जाऊं
जो मुझको बचपन लौटाए ऐसा वक्त कहाँ से लाऊं.

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close