ऐ ज़िन्दगी सुन..

ऐ ज़िन्दगी सुन,
कितनी बदल गयी हो तुम।
हॅंसती खिलखिलाती थी कभी,
अब रहने लगी हो गुमसुम।
वही ठंडी हवाएँ, वही बादल बरसते,
फिर ये नैना मेरे नीर लिए क्यूँ तरसते।
ऐसी आशा ना थी तुमसे,
बदलोगी एक दिन इस कदर
कि लगने लगेगा तुमसे डर।
छाई घनघोर निराशा है,
क्यूँ हो गयी ये दुर्दशा है।
खो दिया एक सितारा,
मैंने अपने गगन का।
वो था बहुत ही प्यारा,
अति विशिष्ट जीवन का।
अश्क गिरे लब तक आए,
यादों में रहती हूँ गुम,
ज़िन्दगी कितनी बदल गयी हो तुम॥
____✍गीता

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