कलम
ऐ कलम !
आज तू बड़े दिन बाद
फिर हाथ आयी है,
कई दिनों बाद
फिर से तेरी ये
स्याही इन हाथों में इतराई है।
नीली- नीली स्याही के छींटे
फिर कागज़ पर पड़े हैं ,
हाथों में सिमटे शब्द
फिर कागज़ को घेरे हैं।
जाने कब-सेइंतज़ार में
थी तू,
जाने कब-से रिहाई
तलाश रही थी तू।
आज तेरे इस आशियाने को
मैं बिखेरूँगी,
आ ! तेरे जादू को मैं उकेरुंगी।
जग बदलने की शक्ति हैं तुझमें,
तो चल !
जग बदलते हैं।
रिहाई की भीख मांगने वालों को
स्वतंत्रता का स्वाद चखते हैं।
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