कविता
ना रुकना है ना थकना है सपने पूरे कर छोडूंगा
मैं जान फूंक दूंगा अब तो , अपना रास्ता न मोडूंगा
सपने पूरे कर छोडूंगा , सपने पूरे कर छोडूंगा
टकराना है चट्टानों से , भिड़ना है जा मैदानों में
जुड़ना है धरती से मुझे , उड़ना है आसमानों में
रोंक सके जज्बात हमारे , अब दम कहाँ तुफानों में
देर लगे चाहें मुझको , राहो से मुख न मोडूंगा
सपने पूरे कर छोडूंगा , सपने पूरे कर छोडूंगा
है सब्र का फल मीठा लेकिन , सब्र कहाँ इंसानो में
हो लक्ष्य न जिसका जीवन मे , रहता है वो शमशानों में
मेरा दर्द क्या जानेगा कोई , है कई राज इन मुस्कानों में
टकराऊँगा हर दीवार से मैं , पर हाथ कभी न छोडूंगा
सपने पूरे कर छोडूंगा , सपने पूरे कर छोडूंगा
जब तक पूर्ण न हो जाये , है चैन कहाँ अरमानो में
लगे न जब पेड़ो में , जाता है कौन बागानों को
मन में जब है ठान लिया , रोकेगा कौन दीवानों को
रच के मैं एक पाठ नया , पन्ना इतिहास में जोड़ूंगा
सपने पूरे कर छोडूंगा , सपने पूरे कर छोडूंगा
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