किसकी खातिर यार जियूंगी
मैं ना अब ये प्यार करूंगी
ना दिल का व्यापार करूंगी
वो ना गर मिलने आए तो
किसकी खातिर यार जिऊंगी
ना आंखों में काजल दमके
ना हाथों में चूड़ी खनके
ना जुल्फों को रोज संवारूं
ना पांवों में झांझर झनके।
ना अब मैं छत पर जाती हूं
ना चंदा से शर्माती हूं
ना होंठों पर लाल रंग है
ना मैं अब खुद को भाती हूं ।
बुझा बुझा सा जीवन मेरा
अब ना ये श्रृंगार करूंगी।
मैं ना अब ये प्यार करूंगी।।
ना रोटी की चिंता खाए
ना मम्मी की याद सताए
ना जीवन में और समस्या
जिस पर हम रोए मुस्काएं
ना दुनिया से बैर मुझे है
ना कहती हूं प्रेम मुझे है
भीड़ में मैने खोया जब से
ना अब खुद का होश मुझे है।
बस मेरा एक श्याम – सलोना
जिस पर कर संताप मरूंगी।
हमने जब देखा था उनको
मान लिया था साजन जिनको
नहीं पता था टकराएंगे
किस्मत मिलवाएगी हमको
रहें सलामत वो इस खातिर
करवा चौथ का व्रत रखूंगी।
कल जब मैं दुल्हन बन जाऊं
हो सकता है ना मिल पाऊं
तेरी दीद को तरसे आंखें
या फिर मैं उसकी हो जाऊं
हर धड़कन में होगे तुम ही
बस कहने को मांग भरूंगी।
मैं ना अब ये प्यार करूंगी
ना दिल का व्यापार करूंगी
वो ना गर मिलने आए तो
किसकी खातिर यार जिऊंगी।
प्रज्ञा शुक्ला सीतापुर
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