कुसुम तुम खिलते हो कैसे
कुसुम खिलते हो तुम कैसे
तुम्हारी पंखुड़ियों में रंग
बताओ! भरते हैं कैसे।
कौन है ऐसा चित्रकार
या कारीगर रंगों का,
कौन है इतना भाव समझता
विलग-विलग रंगों का।
कुछ पंखुड़ियां अलग रंग की
कुछ पराग हैं अलग तरह के
उनमें उड़ते भंवर-पतंगे
अलग-अलग ढंगों के।
खुशबू अलग-अलग भरता है
कारीगर रंगों का,
करता है श्रृंगार तुम्हारे
चेहरे के भावों का।
बहुत खूब, प्रकृति का लाजवाब वर्णन प्रस्तुत किया है आपने