खार भी रखता

खार भी रखता पर आँखों में बसे फूल भी है
सादगी की मिसाल पर चेहरे में पड़े शूल भी है

वो बदलते रहे कुछ ज़माने ज्यादा मेरे वास्ते
नए अंदाज़ भी है कुछ पुराने से उसूल भी है

वो निहारते है बैठ अब भी बचपन को
जिसमे जमके बैठी कुछ पुरानी धूल भी है

उम्र भर लड़ते देखा बस खुद से उनको
पैरों में ज़ंजीर पर हाथों में त्रिशूल भी है

वो मेरे सब कुछ  जाना जब दुनिया देखी
मेरी किताबें भी  है वो मेरा स्कूल भी है  

                         राजेश’अरमान’
                       समस्त पिताओं को समर्पित

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