बे -जा़र नज़र आता है मुझे
उनके अश्कों में भी इक रंग नजर आता है मुझे,
तन्हा रातों में भी कोई संग नजर आता है मुझे,
उल्फ़त में उनकी मैं भी बे-जा़र हो गया लगता,
अब्र का शाया भी गेसुओं सा नज़र आता हैं मुझे,
इश्क मकसद है मिरे जीने का सभी कहते रहे,
अब तो खुद की बातों में असरार नज़र आता हैं मुझे,
जिक्र ए अग्या़र भी होने लगा है अब ख्वाबों में,
नकाबपोशी का असर भी बे-आसार नज़र आता हैं मुझे,
अदायत को आये हर शख्श से रंजिश सी हो गई लगता,
अब तो हर शख्श में तेरा अक्स नज़र आता है मुझे,
तेरे ख्वाबों में ठहरने की ख्वाहिश थी मेरी ,
पर तेरी नींद खुल जाने का डर सा सताता है मुझे,
तिरे ऐवानों पर खड़ा था रात भर मैं भी,
अब तो हर बाब पर. दरबान नज़र आता है मुझे,
तेरी राहें ही हैं रहगुजर मेरी,
अब तो तेरे शाये में भी पर्वरदिगार नज़र आता है मुझे,
Nice
Thank u
very nice!!
तहे-दिल से शुक्रिया…
लाजबाव रचना