खेलें हम अन्तराक्षरी

सावन के इस मंच पर
कवियों का है संगम।
सुंदर सुहानी संध्या में
छोड़ें कुछ सरगम।।
दो पद हम लिखते हैं
दो पद तुम भी गाओ।
खेलें हम अन्तराक्षरी
निज कवित्त सुनाओ।

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

कभी बादलों से

कभी बादलों से कभी बिजलिओं से बनती है सरगम कलकल बहते पानी चलती हवाओं से बनती है सरगम इठलाती घूमती बेटियां होती झंकार बनती है…

Responses

  1. “सुंदर सुहानी संध्या में , छोड़ें कुछ सरगम”।वाह ,भाई जी
    अनुप्रास अलंकार की सुंदर छटा बिखेरती हुई अति सुंदर रचना ।

  2. दो पद हम लिखते हैं
    दो पद तुम भी गाओ।
    वाह बहुत खूब लाजवाब अभिव्यक्ति। वाह वाह शास्त्री जी।

+

New Report

Close