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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
जो आत्मनिर्भर है
1 जो आत्मनिर्भर है, उन्हें आत्मसम्मान की शिक्षा दे रही हैं क्यूँ हमारी सरकार? मजदुर अपने बलबूते पर ही जिन्दगी जीते, ये जाने ले हमारी…
देश दुर्दशा वर्णन ।।
निज राष्ट्र की दुर्दशा अब कोई क्यूँ कहता नहीं? भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी कह गये भारत दुर्दशा, अब कोई कवि महाराज जी ऐसी कविता क्यूँ लिखते नहीं?…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
कभी बादलों से
कभी बादलों से कभी बिजलिओं से बनती है सरगम कलकल बहते पानी चलती हवाओं से बनती है सरगम इठलाती घूमती बेटियां होती झंकार बनती है…
“सुंदर सुहानी संध्या में , छोड़ें कुछ सरगम”।वाह ,भाई जी
अनुप्रास अलंकार की सुंदर छटा बिखेरती हुई अति सुंदर रचना ।
हार्दिक धन्यवाद बहिन
दो पद हम लिखते हैं
दो पद तुम भी गाओ।
वाह बहुत खूब लाजवाब अभिव्यक्ति। वाह वाह शास्त्री जी।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूब
धन्यवाद
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
धन्यवाद
अतीव अतीव सुंदर
धन्यवाद
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, शास्त्री सर
आपके व्यक्तित्व का और आपकी लेखनी का कोई तोड़ नहीं
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद
Bhot achhi poem h