गंगा की व्यथा
जीवन का आधार हूं मैं
भागीरथ की पुकार हूं मैं
मोक्ष का द्वार हूं मैं
तेरे पूर्वजों का उपहार हूं मैं
तेरा आज, तेरा कल हूं मैं
तुझ पर ममता का आंचल हूं मैं
हर युग की कथा हूं मैं
विचलित व्यथित व्यथा हूं मैं
तेरी मां हूं मैं, गंगा हूं मैं|
अनादि अनंत काल से
हिमगिरी से बह रही
तेरी हर पीढ़ी को
अपने पानी से सींच रही
मेरी धारों से गर्वित धरा
धन-धान से फूल रही
विडंबना है यह कैसी?
यह धरा ही मुझको भूल रही
क्ष्रद्धाएं रो रही है, विश्वास रो रहा है
प्रणय विकल रहा है, मेरा ह्रदय रो रहा है
तेरी क्ष्रध्दा का श्रोत हूं मैं
प्रणय का प्रकोष हूं मैं
मेरी मासूम बूंदो का रोष हूं मैं
तेरी मां हूं मैं, गंगा हूं मैं|
असहाय हूं मैं,लाचार हूं
सदियों से शोषण का शिकार हूं
अब तो थोडी सी अपनी उदारता का प्रमाण दो
मेरी इस दशा को थोडा तो सुधार दो
तेरे संस्कारो का क्ष्रंगार हूं मैं
तेरी संस्क्रति की गरिमा हूं मैं
तेरी मां हूं मैं, गंगा हूं मैं…. गंगा |
nice poem on maa ganga!
Thanks a lot anjali
दिल जीत लिया ……पन्ना जी ……जय माँ गंगे…
Thanks panksj ji
Good
वाह