Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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परिंदा
गमों के आसमान का तू परिंदा क्यों है, झूठी उम्मीदों की ज़मी पर तू ज़िंदा क्यों है, सिकोडे हैं हौंसलों के तू क्यों पर अपनें,…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
उम्मीदों का पुलिंदा
उम्मीदों ने ही किया घायल और उम्मीदों पे ही जिंदा था, इस उम्मीद- ए- जहां का मै एक मासूम परिंदा था।। कूट के भरा था…
अजन्मे भ्रुण की व्यथा
मेरी अभिलाषा को थोड़ा-सा उङान दे दो हे तात! मुझे मेरी पहचान दे दो कबतक भटकती रहेगी मेरी आत्मा यूँ करते रहोगे, कहाँ तक मेरा…
हिन्दी गीत- तुम झूठी या मै झूठी
हिन्दी गीत- तुम झूठी या मै झूठी चलो दोनों बात आज सच कहते है | तुम झूठी या मै झूठा चलो दोनों बात आज तय…
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