गाँव मातृ-पिता समाज से बना ।।

गाँव, मात-पिता, समाज से बना, हमारा ये प्रथम संसार है ।
सारी जहां में प्रथम पूजनीय, यहीं हमारा जन्मस्थान है ।।
घर में ममता स्वरूप माता व पिता देवता समान है ।
लक्ष्मण जैसा भाई व स्नेह लूटाने वाली बहन है ।।
पत्नी सति सावित्री व पुत्र श्रवन कुमार है ।
सारी जहां से हटके अपनी आशियाना धरा पे स्वर्ग समान है ।।

अपने को अपने समझें पराया को गले लगाये, यहीं हमारी शान है ।
मातृभूमि पे सर्वस्व लूटा दें, यहीं हमारी मान है ।
मान-हानि का भय भुलाके सर्वदा मानव पथ पे चलें, यहीं हमारी आन है ।
कौन अपना है? कौन पराया है? ये नहीं सोचे हम ।
बेझिकक सबों को मदद करे, यहीं हमारी प्रकृति है ।
प्रकृति को कोई नाश न करें हमारी हमारी जनजागरण है ।।

सारी दुनिया को हम अपनी परिवार समझें ।
करें ध्यान विश्व की कल्याण की ।
मातृभूमि पे कभी आँच न आये ऐसा सैनिक-दल तैनात करे हम ।
जो अपनी सर्वस्व लूट दें निज राष्ट्र के कल्याण में ।।

बच्चें को निज राष्ट्र की महानता व देश की गौरवगाथा सुनाते हम ।
ये भी सुनाते तुम्हारी संस्कृति अब लूप्त होती जा रही है इसे बचाना है तुम्हें ।
निज राष्ट्र को फिर से समृध्द-शक्तिशाली व धनवान बनाना है तुम्हें ।
अपनी निज स्वारथ को भूलाके देशहित में अपना सर्वस्व लूटाना है तुम्हें ।।
कवि विकास कुमार

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