गुनाह

हम गलत हैं या सही
हमें कुछ भी पता नहीं
पता बस इतना चला है
ये दिल मचल चला है
फिर एक बार गुनाह करने चला है
क्या करें, क्या कहे
हम नहीं जानते
ये प्यार है या कुछ और यह भी नहीं जानते
जानने की ख्वाईश में में एक स्वप्न देख लिया
ना कुछ सोंचा ना कुछ समझा
बस तुम्हे अपना मान लिया।।

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Responses

    1. बहुत अच्छा लगा कि आपने हमारी कविता को इतनी बारीकी से पढ़ा।

       परंतु समाज की नजरों से देखा जाए तो कुछ लोग प्रेम को गुनाह” ही समझते हैं।

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