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गुरू की महिमा

गुरू की महिमा का मैं,
कैसे करूं बखान ।
गुरू से ही तो किया है,
ये सब अर्जित ज्ञान।
ऐसा कोई कागज़ नहीं,
जिसमे वो शब्द समाएं।
ऐसी कोई स्याही नहीं,
जिससे सारे गुरू – गुण लिखे जाएं
वाणी भी कितना बोलेगी,
कितनी कलम चलाऊं।
दूर – दूर तक सोचूं जितना भी,
गुरू – गुण लिख ना पाऊं।
गुरू के गुण असीमित भंडार,
गुरू ने ही किया बेड़ा पार
मात – पिता इस दुनियां में लाए,
गुरू ने यहां के तौर – तरीक़े सिखाए।
बिना ज्ञान के क्या जीवन कुछ है?
बिना गुरू के हम तुच्छ है।
प्रातः वंदन,मेरे गुरुओं को मेरा अभिनन्दन,
बना दिया जिन्होंने इस जीवन को चंदन।

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