चलो फिर से कुरेदते है
बीती सुध को,
चंद निमेषों को,
अनुराग भरें संदेशों को,
चलो फिर से कुरेदते है।
क्या अनुपम वेला!
आह्लादों का मैला!
प्रेम-क्रीडा से; मैं था खेला,
गुजरे वक्त की किताबो को,
चलो फिर से खोलते हैं।
क्षत को ,
चलो फिर से कुरेदते है।
टीस की घुट्टी,
दर्द का तुफान,
बैचेनियों की सरसराहट;
आया उफान,
तनहाई के पत्तों को
चलो फिर से बिखेरते हैं,
अभागी नियति को,
चलो फिर से कुरेदते हैं
— मोहन सिंह (मानुष)