चांद..
कल फिर गया था मैं घर की छत पर
उस चांद को देखने
इस उम्मीद में की शायद
तुम भी उस पल उसे ही निहार रही होंगी
देख रही होंगी उसपर बने दाग के उस भाग को
जिसे मैं देख रहा था..
आखिर..
प्यार भी अजीब हैना..
मिलने के कैसे-कैसे बहाने ढूंढ लेता है..
-सोनित
Nice
thank you manohar ji.
बहुत खूब
धन्यवाद.
Good
बहुत सुंदर
वाह
Wah
Nice one