छंद सोरठा =ईश स्मरण

मत करियो अभिमान, रावण का जब नहिं रहा
मन सुमिरो भगवान्, जीवन की मंजिल वही
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दशरथ नंदन राम, मन मंदिर में आय कर
आप दया के धाम, दूर करो चिन्ताए सब

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