जरूरी था

अपने दिल को दिमाग से लड़ाना ज़रूरी था,
उसने बुलाया था उसके पास जाना जरूरी था,

रौशनदान बहुत थे चाहरदिवारी में पर फिरभी,
मुझको अंधरे से भी तो काम कराना ज़रूरी था,

थक हार कर बैठे थे सब लोग समझाकर उसे,
जो मालूम था उसे इशारों में बताना ज़रूरी था,

जश्न ऐ जीत के जराग जला कहीं उड़ न जाऊँ,
खुद को रुई की बाती सा भी गिराना ज़रूरी था,

इश्क के दस्तरखान पर इल्म का पर्दा चढ़ा था,
बड़े इत्मिनान से नज़रों को मिलाना ज़रूरी था,

आना-जाना तो हर रोज़ घर पे लगा रहता था,
पर वो मेरा मेहमान था उसे बैठाना ज़रूरी था,

बोल- बोल कर मनाते दिन-रात बीत गई राही,
शायद पेहरा ख़ामोशी का भी लगाना ज़रूरी था।

राही अंजाना

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