जल उठे थे बुझ के हम

जल उठे थे बुझ के हम, शमा – ए – लौ से प्यार की;
फिर तेरी हर एक झलक, पे नज़रों को झुका जाना;

गर कही जो चल पड़े, तेरे बुलाने पे सनम;
वो तेरा मंजिल – ए – इश्क, से वापस को बुला जाना;

कई असर चलती रही, कूचा – ए – गुल में यार की;
वो तेरा मुझको दीदार – ए – तर को तरसा जाना;

गर कहीं तुम मिल गए किस्मत सराहेंगे कसम;
वो तेरा खा कर कसम, हर कसम को झुठला जाना;

रात की खामोशियाँ, हमको सताती है “महक”;
तेरी याद से रोज़ – रोज़, दिल का यूँ धड़का जाना;

मेरी चाहत का सिला क्या देंगी तेरी तल्खियाँ,
वो तेरा हर मोड़ पर, दिल का बहला जाना;

देख कर हम लुट गए, तेरे प्यार की रुसवाइयां;
फिर कज़ा के वक़्त पर, चेहरे का मुरझा जाना;

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