आरजू
क्या आरजू है दिल की क्या बताएं बस इक आह है जो दिल में बसी है »
लफ्ज़ो में कहाँ बयां होती है मोहब्बत जब बेहिन्तहा होती है हम ही थे जो ये खता कर बैठे अब नसीब में बस अधूरी नज्म होती है »
ज़िन्दगी ने मुझको जीना सिखा दिया अकेले होकर भी खुश रहना सिखा दिया रहती है यादें अब खुशियों के दरम्या यादों ने आसूंओ से दामन छूड़ा लिया »
हर चेहरा नकली है, हर रूह खुदगर्ज यहां उस रूह को ढूंढ़ रही हूँ जो हो अपनी यहां न कोई मुखोटा हो, न दीवारें हों रूह से रूबरू हो हर रिश्ता यहां »
दरारे ही दरारे है आज रिश्तों जे दरम्यान कहीं आँसू है तो कहीं नफरत की दास्तान »
जिन्हें चाहते थे खुद से भी ज्यादा न निभा सके वो अपना वादा तन्हा जब छोड़ दिया जमाने ने हमको हम खुद के करीब हो गए पहले से ज्यादा »
नजरो से तुम क्या बयां करते हो करीब आ कर कहो जो कहना है हँसी नजारे न सही, अंधेरा ही सही तेरे साये में बस हमे रहना है »
मेरे जीवन के अहम इंसान तुम्ही से स्पन्दित यह विश्व महान सरस्वती माँ के तुम सारथी हो तुम्ही से ज्ञान की गंगा का उत्थान मेरा नमन स्वीकार करें पथ मेरा आप सदा प्रदर्शित करें अपने आदर्शों के पाठो से मेरा भविष्य होगा महान »
राखी का त्योहार है आज, आजादी का जशन भी है बहन की खातिर जीना भी चाहता हूँ देश पर मार मिटाने का मन भी है। (देश के सैनिक की मन की बात) »
जब होगा दीदार रब का तो पूछुंगी मैं की तेरी इबादत मोहब्बत में इतनी अड़चने क्यों हैं »
कोई क्या कहता है परवाह किसे है आंखे जब मुहब्बत से रोशन है तो रातो दिन की फिक्र किसे है »
वह दर्द बीनती है टूटे खपरैलों से, फटी बिवाई से राह तकती झुर्रियों से चूल्हा फूँकती साँसों से फुनगियों पर लटके सपनों से न जाने कहाँ कहाँ से और सजा देती है करीने से अगल बगल … हर दर्द को उलट पुलटकर दिखाती है इसे देखिये यह भी दर्द की एक किस्म है यह रोज़गार के लिए शहर गए लोगों के घरों में मिलता है .. यह मौसम के प्रकोप में मिलता है … यह धराशाई हुई फसलों में मिलता है … यह दर्द गरीब किसान... »
हमारे हर लम्हे की कोशिश तुम्हारी रूह तक जाने की थी मगर अफ़सोस आप ही इससे अनजाने थे »
मुझे बारिश में भीगना पसंद था, तम्हें बारिश से बचना… तुम चुप्पे थे, चुप रह कर भी बहुत कुछ कह जाने वाले। मैं बक-बक करती रहती। बस! वही नहीं कह पाती जो कहना होता। तुम्हें चाँद पसंद था, मुझे उगता सूरज। पर दोनों एक-दूजे की आँखों में कई शामें पार कर लेते। मुझे हमेशा से पसंद थीं बेतरतीब बातें और तुम्हें करीने से रखे हर्फ़। सच! कितने अलग थे हम.. फ़िर भी कितने एक-से। »
जब चलते-चलते थक जाओ तो कुछ देर ही सही थाम लेना पैरोँ के पहिए.. बहाने से उतर जाना पल दो पल ज़िन्दगी की साइकल से.. देखना ग़ौर से मुड़कर कहीँ बहुत पीछे तो नहीँ छूट गया ना.. धूल मेँ लिपटा माज़ी…. »
प्रेम कवितासबने प्रेम पर जाने क्या-क्या लिखा फ़िर भी अधूरी ही रही हर प्रेम कविता »
बदरा घिर घिर आयी देखो अम्बर के अंसुअन बरसे है कोई न जाने पीर ह्रदय की पी के मिलन को हिय तरसे है यह मधुमास यूँ बीत न जाये नैनों से झरता सावन है जब से पत्र तुम्हारा आया भीगा भीगा सा तन मन है »
समंदर के किनारे बैठे कभी लहरों को गौर से देखा है एक दूसरे से होड़ लगाते हुए .. हर लहर तेज़ी से बढ़कर … कोई छोर छूने की पुरजोर कोशिश करती फेनिल सपनों के निशाँ छोड़ – लौट आती – और आती हुई लहर दूने जोश से उसे काटती हुई आगे बढ़ जाती लेकिन यथा शक्ति प्रयत्न के बाद वह भी थककर लौट आती .बिलकुल हमारी बहस की तरह !!!!! »
लफ्ज़ो को बढ़े करीने से सजाया है इस नज़्म में नूर ए इश्क़ को बहाया है कुछ समन लाकर रख दिये है इसके करीब अपने होठों से हमने इसे गाया है »
नारी की दशा बहोत ही विचित्र सी है है देवी पर क्यों अपवित्र सी है ? है हर जीवन का स्रोत… पर जीते जी स्वयं मृत सी है »
दिखावे के प्यार दिखावे का खुला आसमां मिला जब भी उड़ना चाहा मुझको बस नीचे का रास्ता मिला »
कसम से हर जुबाँ से दर्द मिला कभी नज़रों से वो दर्द मिला न जाने कब बदलेगा ये हालात नारी होने का हर दर्द मिला »
मै अपने साये में धूप लेकर चलती हूं तेरे लिये छाव फैलाये चलती हूं तू कभी मिल जाता है मुझे अगर तेरे पाव के नीचे हाथ बिछाये चलती हूं »
तन्हाई में तुम्हारा ख्याल जो आया दूर पहाड़ो पर फैली धुंध बन गया सर्दियों की खिली धूप बन तपा फूलो पर ओस की बूंद बन गया…… »
कितने जमाने आये और गुजर गये मुहब्बत के जमाने का असर मगर अब तक है »
दफ़न कर दूं अब अहसासों को यही इक काम अब ठीक रहेगा »
अन्नदाता कहलाता हूं पर भूखा मैं ही मरता हूं कभी सेठ की सूद का तो कभी गोदाम के किराये का इंतजाम करता फिरता हूं बच्चे भूखों मरते है खेत प्यासे मरते है अब किसकी व्यथा मैं दूर करूं मैं ही हरपल मरता हूं अन्नदाता कहलाता हूं »
बेटी घर की रौनक होती है बाप के दिल की खनक होती है माँ के अरमानों की महक होती है फिर भी उसको नकारा जाता है भेदभाव का पुतला उसे बनाया जाता है आओ इस रीत को बदलते है एक बार फिर उसका स्वागत करते है »
वोट डालने चलो सखी री लोकतंत्र के अब आयी बारी एक वोट से करते हैं बदलाव नेताजी के बदले हम हाव-भाव ! सही उम्मीदवार का करते है हम चुनाव, बेईमानों को नहीं देंगे अब भाव ! आपका वोट है आपकी ताकत लोकतंत्र की है ये लागत सुबह सवेरे वोट दे आओ वोटर ID संग ले जाओ ! »
सुरज की स्वर्णिम किरणें जब पड़ती धरा पर, चहचहाते पक्षी मचाते कलरव, हौसलों की भरते वो उड़ान है, देखो जज़्बा उन पंछियों का, छू लेते वो आसमान है। देखकर पंछियों को लगता मेरे मन को, काश कि मै भी उड़ सकता, पंख फैलाकर नील गगन को मै भी छू सकता। बस सोच ही रहा था बैठे-बैठे, कि मेरे मन में ये ख्याल आया.. है पंछियों के जैसे मेरे पंख नहीं तो क्या, है बुलंद इरादा मेरे भीतर जो छिपा बैठा, है मुझमे हिम्मत, है हौसल... »
माथे की लकीरें हर दिन बढ़ती जाती है भविष्य की चिंता रोज उभरती जाती है »
तेरी ख्वाहिश में हम क्या से क्या हो गये कभी अपने थे हम, अब बैगाने हो गये »
जल उठे थे बुझ के हम, शमा – ए – लौ से प्यार की; फिर तेरी हर एक झलक, पे नज़रों को झुका जाना; गर कही जो चल पड़े, तेरे बुलाने पे सनम; वो तेरा मंजिल – ए – इश्क, से वापस को बुला जाना; कई असर चलती रही, कूचा – ए – गुल में यार की; वो तेरा मुझको दीदार – ए – तर को तरसा जाना; गर कहीं तुम मिल गए किस्मत सराहेंगे कसम; वो तेरा खा कर कसम, हर कसम को झुठला जाना; रात की खामोशियाँ, हमको सताती है “महक”; तेरी याद से रोज... »