आरजू
क्या आरजू है दिल की क्या बताएं बस इक आह है जो दिल में बसी है
क्या आरजू है दिल की क्या बताएं बस इक आह है जो दिल में बसी है
लफ्ज़ो में कहाँ बयां होती है मोहब्बत जब बेहिन्तहा होती है हम ही थे जो ये खता कर बैठे अब नसीब में बस अधूरी नज्म…
ज़िन्दगी ने मुझको जीना सिखा दिया अकेले होकर भी खुश रहना सिखा दिया रहती है यादें अब खुशियों के दरम्या यादों ने आसूंओ से दामन…
हर चेहरा नकली है, हर रूह खुदगर्ज यहां उस रूह को ढूंढ़ रही हूँ जो हो अपनी यहां न कोई मुखोटा हो, न दीवारें हों…
दरारे ही दरारे है आज रिश्तों जे दरम्यान कहीं आँसू है तो कहीं नफरत की दास्तान
जिन्हें चाहते थे खुद से भी ज्यादा न निभा सके वो अपना वादा तन्हा जब छोड़ दिया जमाने ने हमको हम खुद के करीब हो…
नजरो से तुम क्या बयां करते हो करीब आ कर कहो जो कहना है हँसी नजारे न सही, अंधेरा ही सही तेरे साये में बस…
रोशनी तो रुखसत हो गयी है अरसे पहले अंधेरा है जो अब तलाक साथ है मेरे
मेरे जीवन के अहम इंसान तुम्ही से स्पन्दित यह विश्व महान सरस्वती माँ के तुम सारथी हो तुम्ही से ज्ञान की गंगा का उत्थान मेरा…
राखी का त्योहार है आज, आजादी का जशन भी है बहन की खातिर जीना भी चाहता हूँ देश पर मार मिटाने का मन भी है।…
जब होगा दीदार रब का तो पूछुंगी मैं की तेरी इबादत मोहब्बत में इतनी अड़चने क्यों हैं
कोई क्या कहता है परवाह किसे है आंखे जब मुहब्बत से रोशन है तो रातो दिन की फिक्र किसे है
वह दर्द बीनती है टूटे खपरैलों से, फटी बिवाई से राह तकती झुर्रियों से चूल्हा फूँकती साँसों से फुनगियों पर लटके सपनों से न जाने…
हमारे हर लम्हे की कोशिश तुम्हारी रूह तक जाने की थी मगर अफ़सोस आप ही इससे अनजाने थे
मुझे बारिश में भीगना पसंद था, तम्हें बारिश से बचना… तुम चुप्पे थे, चुप रह कर भी बहुत कुछ कह जाने वाले। मैं बक-बक करती…
जब चलते-चलते थक जाओ तो कुछ देर ही सही थाम लेना पैरोँ के पहिए.. बहाने से उतर जाना पल दो पल ज़िन्दगी की साइकल से..…
प्रेम कवितासबने प्रेम पर जाने क्या-क्या लिखा फ़िर भी अधूरी ही रही हर प्रेम कविता
बदरा घिर घिर आयी देखो अम्बर के अंसुअन बरसे है कोई न जाने पीर ह्रदय की पी के मिलन को हिय तरसे है यह मधुमास…
और एक दिन दे दिये शब्द सारी व्यथाओं को लिख डाली एक कविता अपनी पहली कविता …
समंदर के किनारे बैठे कभी लहरों को गौर से देखा है एक दूसरे से होड़ लगाते हुए .. हर लहर तेज़ी से बढ़कर … कोई…
लफ्ज़ो को बढ़े करीने से सजाया है इस नज़्म में नूर ए इश्क़ को बहाया है कुछ समन लाकर रख दिये है इसके करीब अपने…
नारी की दशा बहोत ही विचित्र सी है है देवी पर क्यों अपवित्र सी है ? है हर जीवन का स्रोत… पर जीते जी स्वयं…
दिखावे के प्यार दिखावे का खुला आसमां मिला जब भी उड़ना चाहा मुझको बस नीचे का रास्ता मिला
कसम से हर जुबाँ से दर्द मिला कभी नज़रों से वो दर्द मिला न जाने कब बदलेगा ये हालात नारी होने का हर दर्द मिला
मै अपने साये में धूप लेकर चलती हूं तेरे लिये छाव फैलाये चलती हूं तू कभी मिल जाता है मुझे अगर तेरे पाव के नीचे…
तन्हाई में तुम्हारा ख्याल जो आया दूर पहाड़ो पर फैली धुंध बन गया सर्दियों की खिली धूप बन तपा फूलो पर ओस की बूंद बन…
Let me take care of your life Let me feel pain of your heart let me hold you hand and take you away far from…
आज मेरी खुद से मुलाकात हो गई चुप थी जमाने से, आज खुद से बात हो गई।
कोई बात दबी है जहन में मेरे कोई बात चले तो कुछ बात बने
कितने जमाने आये और गुजर गये मुहब्बत के जमाने का असर मगर अब तक है
जब हम साथ है तो फासलों का ज़िक्र क्यों करें डर के शागिर्द में जिंदगी बसर क्यों करे
दफ़न कर दूं अब अहसासों को यही इक काम अब ठीक रहेगा
क्या ठिकाना है मेरा मुझे नहीं पता लापता हूं अरसे से खुद में कहीं
अन्नदाता कहलाता हूं पर भूखा मैं ही मरता हूं कभी सेठ की सूद का तो कभी गोदाम के किराये का इंतजाम करता फिरता हूं बच्चे…
बेटी घर की रौनक होती है बाप के दिल की खनक होती है माँ के अरमानों की महक होती है फिर भी उसको नकारा जाता…
वोट डालने चलो सखी री लोकतंत्र के अब आयी बारी एक वोट से करते हैं बदलाव नेताजी के बदले हम हाव-भाव ! सही उम्मीदवार का…
ख्याल आते तो है मगर दब जाते है कहीं दिल में अक्सर डर जाते है जमाने के कहर से
सुरज की स्वर्णिम किरणें जब पड़ती धरा पर, चहचहाते पक्षी मचाते कलरव, हौसलों की भरते वो उड़ान है, देखो जज़्बा उन पंछियों का, छू लेते…
किसी कीं ख़ातिर दिल में मोहब्बत लेकर भटक रहे हैं सब ख़रीददार मिलते हैं, बिकनेवाले नहीं मिलते |
ये बारिश ये हसीन मौसम और ये हवाये लगता है आज मोहब्बत ने किसी का साथ दिया है.
माथे की लकीरें हर दिन बढ़ती जाती है भविष्य की चिंता रोज उभरती जाती है
तेरे कलाम में हर पहर पढ़ती रहती हूं तेरी हर नज्म में खुद को ढ़ूढती रहती हूं इक चाहत थी कि तुझसे किसी दिन मिलूं…
इक फरियाद थी मेरे दिल की आरजू थी इक दबी दबी सी सब अधूरी ही रह जायेंगी कह कर गया था वो अभी
लफ़्ज हो गये है खत्म दास्ता बयां करते करते कुछ कहते हम अक्सर थम जाते है
कोई बात है उनमें शायद जो याद आते है या फिर हमें बस याद करने की आदत हो गयी है
तेरी ख्वाहिश में हम क्या से क्या हो गये कभी अपने थे हम, अब बैगाने हो गये
कभी लफ़्जों में ढल जाती हूं कभी आखों में पिघल जाती हूं मैं तो तेरी खुशबू हूं हर तरफ़ बिखर जाती हूं
जल उठे थे बुझ के हम, शमा – ए – लौ से प्यार की; फिर तेरी हर एक झलक, पे नज़रों को झुका जाना; गर…
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