ज़िन्दगी अब मेरी

ज़िन्दगी अब मेरी
बिखर के ना रह जाये

रोती हैे मेरी आँखे
कोई सवाल ना कर जाये

लबो पे है
जाने कैसी हँसी

जुबां तो ख़ामोश है
ख़ामोश नज़रें ना सब कुछ कह जाये

रुक जा ज़रा
मेरे हमसफ़र

कोई राहों में
तुझसे कही छूट ना जाये..

नेहा

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

ओ मेरे हमसफर

मेरे हमसफर जो साथ हो मेरे जिंदगी भर के लिए, कभी दुःख में, कभी सुख में हमेशा साथ रहे मेरे, एक दुसरे का साथ हो…

Responses

+

New Report

Close