जाने किस कशमकश में

जाने किस कश्मकश में,

जिंदगी गुजरती जा रही है,

न जाने मैं अपना न पाई या,

जिंदगी मुझे आजमाती रही,

बहुत हीं कच्ची डोर में,

ये पतंग फँसी हुई है,

न जाने किस गुमाँ में,

उड़ती चली जा रही है,

नादान है जिन्दगी या,

मुझे कुछ समझा रही है ,

न जाने क्यूँ मुझ पर ,

इतना हक जता रही है,

जिंदगी तेरी पाठशाला मुझे,

उलझाती जा रही है,

बस यूँ हीं तुझे समझते,

कुछ कहते सुनते,

ये उम्र चली जा रही है,

यूँ तो तुझसे कोई शिकवा,

नहीं है जिन्दगी मुझे तो,

तेरे संग चलते-चलते,

एक अरसे हो गया है,

अब तो पग-पग बढ़ाने का,

तजुर्बा हो गया है,

फिर भी मोड़ कितने हैं,

आजमाना रह गया है,

जिंदगी मुझे तुझ में,

तुझे मुझ में समाना रह गया ।।

 

https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/09/02

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