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जिसे जिंदगी कहते हैं

कितनी उधेड़बुन करती हूं,
मैं इन धागों के साथ ।
जिसे जिंदगी कहते हैं ,
कभी गम की गांठ खोलती हूं।
कभी खुशियों की गांठ बांधती हूं ।
बस लगी रहती हूं ,इसे सुलझाने में।
कितनी उधेड़बुन करती हूं,
मैं इन धागों के साथ।
जिसे जिंदगी कहते हैं।

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