जिसे जिंदगी कहते हैं

कितनी उधेड़बुन करती हूं,
मैं इन धागों के साथ ।
जिसे जिंदगी कहते हैं ,
कभी गम की गांठ खोलती हूं।
कभी खुशियों की गांठ बांधती हूं ।
बस लगी रहती हूं ,इसे सुलझाने में।
कितनी उधेड़बुन करती हूं,
मैं इन धागों के साथ।
जिसे जिंदगी कहते हैं।

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

AMMA

देखो उस बुढ़िया को,घर के कोने मे जो रहती है आँगन मे डली चार पाई, पर रोज़ वो बैठी रहती है शरीर मुरझाया सा ,ना…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. सुख-दुख का आना स्वाभाविक बात है मगर जिंदगी के साथ संघर्ष करना बहुत बड़ी बात ।
    सुंदर भाव
    बेहतरीन पंक्तियां

+

New Report

Close