जुल्फ़ों की छांव
सुकूने-तलाश में भटकते, कई नगर कई गांव मिले।
आरज़ू है बस यही, तेरी जुल्फ़ों की छांव मिले।
तेरे इंतज़ार में, कई ज़ख्म लिए बैठा मैं दिल में,
या रब ना अब, जुदाई का और कोई घाव मिले।
तुम जो मिले जीने की तमन्ना फिर जाग उठी,
जैसे किसी डुबते को, तिनके की नाव मिले।
यही वक्त है, दुनिया कदमों में झुकाने की ‘देव’
फिर ना कहना कि, बस एक और दांव मिले।
देवेश साखरे ‘देव’
बढ़िया
शुक्रिया
बेहतरीन
आभार आपका
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद
Wah