तारीफ़ तेरी
तारीफ़ तेरी, नहीं मेरी जुबां करती है ।
नजरें पढ़ ले, हाले-दिल बयां करती है ।
इश्क में हूँ तेरे आज भी, जहां जानता है,
तेरा हुश्ने-मुकाबला, कोई कहाँ करती है ।
माना बरसों पुराना, इश्के-फसाना हमारा,
पर आज भी, इश्के-मिसाल जहां करती है ।
एक तेरे सिवाय, नहीं कोई और जिंदगी में,
शक मुझ पर, बेवजह, ख़ामख़ाह करती है ।
कल के लिए, हम अपना आज ना खो दें,
कल का फैसला, जिंदगी की इम्तहां करती है।
देवेश साखरे ‘देव’
Good
Thanks
वाह
धन्यवाद
वाह बहुत सुंदर रचना ढेरों बधाइयां
धन्यवाद