तुम पर एक ग़ज़ल लिखूं
तुम्हें गुलाब लिखूं या फिर कंवल लिखूं।
जी चाहता है तुझ पर एक ग़ज़ल लिखूं।
गुल लिखूं, गुलफ़ाम या लिखूं गुलिस्तां,
या फिर तुम्हें महकता हुआ संदल लिखूं।
तन्हाई छोड़ बना लूं तुम्हें शरीक-ए-हयात,
ज़िंदगी के पन्ने पर ये हॅसीन पल लिखूं ।
ज़िंदगी तुम्हारे नाम लिख तो दी है ‘देव’,
तुम्हें अपना आज लिखूं, अपना कल लिखूं।
देवेश साखरे ‘देव’
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद